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गूगल और फेसबुक के सीईओ पर लगा विज्ञापन बिक्री की हेरफेर का आरोप, केस दर्ज

अमेरिकी अदालत के दस्तावेजों से शुक्रवार को खुलासा हुआ कि ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में अपने प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए कथित रूप से 2018 के अवैध सौदे को मंजूरी देने में गूगल और फेसबुक के हेड सीधे तौर पर शामिल थे. दोनों ही दिग्गज टेक कंपनियों पर ''प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण'' और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया गया है. मुकदमे में कहा गया है कि दोनों ही कंपनियों के सीईओ को इस समझौते के बारे में जानकारी थी. 

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हाइलाइट्स
  • गूगल और फेसबुक प्रमुख पर आरोप

  • गूगल के प्रवक्ता ने आरोपों को नाकारा

अमेरिका में एक गंभीर एंटी-ट्रस्ट शिकायत से कथित तौर पर पता चला है कि मेटा (फेसबुक) के सीईओ मार्क जुकरबर्ग और अल्फाबेट और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई एक विज्ञापन की मिलीभगत की साजिश में शामिल थे. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, टेक्सास और अन्य राज्यों के वकीलों ने यह आरोप लगाया है.

कहा जा रहा है कि जुकरबर्ग और पिचाई ने व्यक्तिगत रूप से एक गुप्त सौदे को मंजूरी दी. कहा जा रहा है कि यह सौदा ऑनलाइन विज्ञापन बाजार में उनका प्रभुत्व मजबूत करने के लिए था. दोनों ही दिग्गज टेक कंपनियों पर ''प्रतिस्पर्धा-विरोधी आचरण'' और एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने का आरोप लगाया गया है. 

गूगल के खिलाफ दायर हुआ मुकदमा: 

गूगल खिलाफ मुकदमा दायर करते हुए कहा गया है कि फेसबुक की मुख्य संचालन अधिकारी (सीओओ) शेरिल सैंडबर्ग के 2018 में किये गए सिलसिलेवार ईमेल की बातचीत से स्पष्ट होता है कि गूगल और फेसबुक के बीच कोई सौदा हुआ, जो रणनीतिक रूप से एक बड़ा सौदा था. 

इस सौदे में फेसबुक के सीईओ भी शामिल थे. और गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई को इसकी जानकारी थी और उन्होंने इस सौदे पर हस्ताक्षर किए हैं. 

गूगल ने आरोपों को नकारा: 

हालांकि गूगल के प्रवक्ता पीटर शोटेनफेल्स ने बयान जारी करते हुए कहा कि यह मुकदमा सही नहीं है. इस मुकदमे में 'कई गलतियां हैं और कानूनी विशेषता का अभाव है.' सितंबर 2018 में शिकायत में कहा गया कि दोनों कंपनियों ने समझौते पर हस्ताक्षर किए. राज्यों की शिकायत के अनुसार कभी गूगल के विज्ञापन व्यवसाय की प्रमुख रहीं सैंडबर्ग और पिचाई ने व्यक्तिगत रूप से समझौते पर हस्ताक्षर किए. 

शोटेनफेल्स का कहना है कि आरोप लगाया गया कि पिचाई ने फेसबुक के साथ समझौते को मंजूरी दी है. यह 'ठीक नहीं है. क्योंकि कंपनी में हर साल सैकड़ों समझौतों पर हस्ताक्षर किया जाता है और हर किसी समझौते के लिए सीईओ की मंजूरी की आवश्यकता नहीं होती है और यह समझौता भी इससे अलग नहीं था. उनका कहना है कि यह समझौता कभी भी गोपनीय नहीं था.