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ऑटोपायलट पर टेस्ला कार ड्राइवर की मौत मामले में ट्रायल शुरू, कार में कैसे काम करता है ऑटो पायलट फीचर?

टेस्ला एक्सीडेंट के पीड़ितों का पक्ष रखने वाले लॉयर ने कोर्ट में टेस्ला को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, एक कार कंपनी को कभी भी उपभोक्ताओं को एक्सपेरिमेंटल व्हीकल नहीं बेचना चाहिए". इस सिविल लॉ सूट में आरोप लगाया गया है कि टेस्ला मॉडल 3 कार में ऑटो पायलट सिस्टम का इस्तेमाल करने के कारण मीका ली की कार अचानक हाईवे से नीचे उतर गई.

Elon Musk; Tesla Car Autopilot Elon Musk; Tesla Car Autopilot

ऑटोपायलट मोड पर टेस्ला ड्राइवर की मौत मामले में ट्रायल शुरू हो गया है. पीड़ित पक्ष ने दावा किया है कि कंपनी ने जानबूझकर डिफेक्टिव कार बेची जिसके कारण ड्राइवर की मौत हुई, जबकि टेस्ला ने इसे 'क्लासिक ह्यूमन एरर' बताया है. बता दें टेस्ला ऑटो पायलट सिस्टम का इस्तेमाल करते हुए एक्सीडेंट का ये कोई पहला मामला नहीं है जो कोर्ट तक पहुंचा है. अब तक ऐसे 14 हादसे दर्ज किए जा चुके हैं.

2019 में हुआ था हादसा

टेस्ला एक्सीडेंट के पीड़ितों का पक्ष रखने वाले लॉयर ने कोर्ट में टेस्ला को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, एक कार कंपनी को कभी भी उपभोक्ताओं को एक्सपेरिमेंटल व्हीकल नहीं बेचना चाहिए". इस सिविल लॉ सूट में आरोप लगाया गया है कि टेस्ला मॉडल 3 कार में ऑटो पायलट सिस्टम का इस्तेमाल करने के कारण मीका ली की कार अचानक हाईवे से नीचे उतर गई. जहां कार एक पेड़ से टकरा गई और आग लग गई. 2019 में हुई दुर्घटना में ली की मौत हो गई और उनके साथ बैठे दो लोग गंभीर रूप से घायल हो गए, जिनमें एक आठ साल का लड़का भी शामिल था.

बीटा वर्जन में थी कार फिर भी बेची

कार के पैरेंजर्स और ली के परिवार ने टेस्ला के खिलाफ दायर मुकदमे में आरोप लगाया है कि जब कंपनी ने कार बेची तो उन्हें पता था कि ऑटोपायलट मोड में कई खामियां हैं. ली के वकील ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि जब 37 वर्षीय ली ने 2019 में मॉडल 3 Full self-driving capability package वाली टेस्ला कार खरीदी, तो उस वक्त सिस्टम "बीटा वर्जन" में था, जिसका मतलब है कि मार्केट में उतारने से पहले कंपनी उसकी टेस्टिंग कर रही थी. लॉयर ने कोर्ट में टेस्ला में Excessive Steering command जैसी खामी का भी जिक्र किया.

ऑटोपायलट का काम है सड़क को सुरक्षित बनाना

वहीं टेस्ला के वकील माइकल कैरी ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि कंपनी का ऑटोपायलट सिस्टम स्टीयरिंग पर हाई स्पीड "रेलिंग" लगाता है, जिससे कार हाईवे पर केवल थोड़ा बाएं या दाएं ही स्टीयरिंग करने में सक्षम होती है. कंपनी ने ये भी दावा किया कि ड्राइवर उस वक्त नशे में था. मामला ऑटोपायलट मोड का नहीं है. ऑटोपायलट मोड सड़क को सुरक्षित बनाता है. यह एक क्लासिक ह्यूमन एरर है जो कि दुर्घटना का कारण बनी. कंपनी ने ये दावा भी किया कि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि दुर्घटना के समय ऑटोपायलट चालू भी था या नहीं.

ड्राइवरों को सिस्टम के बारे में चेतावनी देती है कार

टेस्ला ने इस साल 2019 में हुआ ऑटो पायलट का एक केस भी जीता था जिसमें कंपनी ने दलील दी थी कि उनकी कार ड्राइवरों को चेतावनी भी देती है कि "ऑटोपायलट" तकनीक के बावजूद आपको ड्राइविंग के वक्त ध्यान देने की जरूरत है. जूरी सदस्यों ने अपने फैसले में कहा था कि टेस्ला ने ड्राइवरों को अपने सिस्टम के बारे में चेतावनी दी थी और एक्सीडेंट के लिए ड्राइवर का ध्यान भटकना जिम्मेदार था. 

क्या होती है ऑटोपायलट टेक्नॉलजी

ऑटोपायलट का मतलब है कि बिना ड्राइवर की मदद के कार का चलना. ऑटोपायलट टेक्नोलॉजी में कार का सिस्टम मैप के जरिए डायरेक्ट सैटेलाइट से कनेक्ट होता है. ड्राइवर को जहां जाना है, ये मैप पर सिलेक्ट किया जाता है. इसके बाद रूट का सलेक्शन होता है. जब कार ऑटोपायलट मोड पर चलती है तब सैटेलाइट के साथ उसे कार के चारों तरफ दिए गए कैमरा से भी इनपुट मिलता है. जब कार के सामने कोई ऑब्जेक्ट आता है तो कार लेफ्ट-राइट मूव होती है या फिर किसी के अचानक सामने आ जाने पर रुक जाती है. कार में कई सेंसर लगे होते हैं, जो कार की लिमिट और लेन में चलने में मदद करते हैं और सिग्नल को रीड करते हैं. ऑटोपायलट मोड में कार की स्पीड 112 किमी प्रति घंटा तक हो सकती है. ऑटोपायलट स्पीड को बढ़ा सकता है. ब्रेक भी लगा सकता है.