आज के युग में सोशल मीडिया रोजमर्रा की जिंदगी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. साथ ही यह एक ऐसे मंच के रूप में भी उभरा है जहां लोग अपनी भावनाओं को बयां कर सकते हैं. अपना सुख-दुःख और चिंता लोग खुलकर सोशल मीडिया पर बता सकते हैं. इसका सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि हमें ये पता चल जाता है कि सामने वाला किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा है. ऐसे ही लोगों की मदद करने के लिए उत्तर प्रदेश (यूपी) पुलिस ने मेटा के साथ कॉलाबोरेशन किया है. पिछले 18 महीनों में, इसी पहल से 457 लोगों को सुसाइड करने से बचाया गया है.
यूपी पुलिस की जीवन बचाओ पहल
यूपी पुलिस की जीवन बचाने की पहल की कहानी फेसबुक और इंस्टाग्राम की मूल कंपनी मेटा के साथ उनकी साझेदारी से शुरू होती है. अमेरिका में मेटा का ऑफिस सक्रिय रूप से ऐसे पोस्ट पर निगरानी रखता है जिनमें सुसाइड जैसे संकेत हों. वहीं पुलिस हेडक्वार्टर (DGP) यूपी पुलिस के सोशल मीडिया सेंटर को अलर्ट करता है. इसकी मदद से यूजर को कोई भी गलत कदम उठाने से रोका जाता है.
यूपी के डीजीपी प्रशांत कुमार ने द इंडियन एक्सप्रेस से साझा किया, “हमारी सफलता से प्रेरित होकर, देश भर के कई राज्य मेटा के साथ हमारी ही तरह कॉलाबोरेशन करना चाहते हैं. इसके लिए उन्होंने हम लोगों से मदद भी मांगी है. हमने उन्हें इसी तरह की प्रक्रियाएं शुरू करने के लिए जरूरी सहायता और मार्गदर्शन किया है.”
यह पूरा सिस्टम कैसे काम करता है?
जब मेटा को ऐसी पोस्ट का पता चलता है जो सुसाइड के इरादे का संकेत देती है, तो तुरंत यूपी पुलिस के सोशल मीडिया सेंटर पर एक अलर्ट भेजा जाता है. एक समर्पित टीम और यूपी स्पेशल टास्क फोर्स (STF) सर्वर के साथ चौबीसों घंटे काम करती है. जैसे ही कोई अलर्ट मिलता है, टीम मेटा की दी गई जानकारी का उपयोग करके व्यक्ति के स्थान का पता लगाने का काम करती है.
एक बार जगह की पहचान हो जाने के बाद, टीम अधिकारियों को घटनास्थल पर भेजने के लिए स्थानीय पुलिस जिले या कमिश्नर के साथ कोऑर्डिनेट करती है. इन अधिकारियों का लक्ष्य न केवल शारीरिक रूप से इस काम को रोकना है, बल्कि व्यक्ति और उनके परिवार के साथ जुड़ना और अगर के लिए सहायता और परामर्श देना भी है.
मेटा से 740 अलर्ट मिले हैं
1 जनवरी 2023 से 15 जून 2024 तक सोशल मीडिया सेंटर को मेटा से 740 अलर्ट मिले हैं. इनमें से यूपी पुलिस ने 457 मामलों में सफलतापूर्वक हस्तक्षेप कर 353 पुरुषों और 104 महिलाओं को बचाया है. हालांकि, कुछ मामलों में, पूरा डेटा न मिलने या व्यक्ति उनके अधिकार क्षेत्र से बाहर होने के कारण पुलिस उस व्यक्ति का पता लगाने में असमर्थ रही. घने इलाकों और स्विच-ऑफ फोन ने भी काफी मुश्किलें पैदा की.
लेकिन, मेटा के साथ यूपी पुलिस की साझेदारी की सफलता ने पूरे भारत के दूसरे राज्यों का ध्यान खींचा है.