
बात जब देसी जायके की हो और बनारस का नाम ज़हन में न आए, ऐसा मुमकिन नहीं. बनारस न सिर्फ आध्यात्मिक और ऐतिहासिक नगरी है... बल्कि, यहां का खान-पान भी दुनियाभर में मशहूर है. बनारस में तो वैसे कई चीजें हैं, जो दुनियाभर में ख्याति रखती हैं. लेकिन ठठेरी बाजार में मिलने वाली हींग की कचौड़ी की बात ही कुछ और है. दीनानाथ की दुकान पर 60 साल पहले हींग की कौचौड़ी बनाने का काम शुरू हुआ था. जो अब देश और दुनियाभर के खान-पान के शौकीन लोगों की पसंदीदा जगह बन गई है.
आयुर्वेदिक दवा का काम करते मसाले
हींग की कचौड़ी जितनी टेस्टी होती है, इसके मसाले भी उतने ही लाजवाब हैं. दीनानाथ का दावा है कि ये सिर्फ मसाले ही नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक दवा का भी काम करते हैं. वह कहते हैं कि उनकी कचौड़ी खाने से न तो किसी का गला जलता है और न ही पेट. और ऐसा कोई मसाला नहीं है जो उनकी कचौड़ी में न हो.
उन्होंने कहा कि इसमें सभी आयुर्वेदिक औषधियां शामिल हैं. हर मौसम में इसे खाया जा सकता है. अगर आप इसे सर्दियों में खाएंगे तो आपको पसीना आने लगेगा. इसमें जावित्री, लौंग और दालचीनी आदि होती है. उनकी हींग की कचौड़ी का कोई सानी नहीं है.
कैसे बनाई जाती है हींग की कचौड़ी
दीनानाथ ने बताया कि सबसे पहले आलू धोये जाते हैं, उबाले जाते हैं. फिर आलू छीले जाते हैं और भूने जाते हैं, फिर मसालों को पीस लिया जाता है. हींग, जीरा जैसे मसालों का इस्तेमाल होता है. फिर इस मसाले को भरकर कचौड़ियां बनाई जाती हैं. देसी घी में बनने वाली हींग की कचौड़ी की खुशबू, बनारस की गलियों में कुछ यूं बिखरी है कि यहां से गुजरने वाले लोग, हींग की कचौड़ी का स्वाद चखने से नहीं रुकते.
दशकों पुरानी है दुकान
बनारस में इस खास हींग की कचौड़ी का स्वाद चखने के लिए न केवल बनारस, बल्कि देश के कोने-कोने और यहां तक की कभी-कभी विदेश से भी सैलानी आ जाते हैं. यह दुकान वाराणसी के चौक क्षेत्र के सोराकुआं ठठेरी बाजार इलाके में दीना गुरु की हींग के कचौड़ी के नाम से प्रसिद्ध है. आज से लगभग 65 सालों पूर्व सन 1960 इस दुकान को दीना महाराज के बड़े भाई सत्यनारायण मिश्रा ने 13 वर्ष की उम्र मे आलू की टिक्की से शुरुआत की थी.
उसके कुछ वर्षो बाद दीना महाराज ने हींग की कचौड़ी बनानी शुरू की. जिसमे सभी मसालो के अलावा सफ़ेद हींग डाली जाती है. बिना लहसुन प्याज के और वैष्णव पद्धत्ति पर कोयले की आंच पर धीमे-धीमे पकती है. कचौड़ी का साथ देने के लिए काले चने की घुघनी भी रहती है. बाकी रही सही कसर पुदीने की चटनी पूरी कर देती है.