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Jantar Mantar: दिल्ली के अलावा इन शहरों में भी हैं जंतर-मंतर, इस राजा ने कराया था निर्माण

दिल्ली के अलावा और तीन शहरों में जंतर-मंतर मौजूद हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि जंतर मंतर सिर्फ टूरिस्ट प्लेस नहीं है बल्कि ये वास्तुशिल्प के चमत्कार हैं जो विज्ञान, खगोल विज्ञान और कला को सबसे सुंदर और दिलचस्प तरीके से जोड़ते हैं.

Jantar Mantar in Delhi (Photo: Wikipedia) Jantar Mantar in Delhi (Photo: Wikipedia)

आज दिल्ली में जब भी कोई विरोध-प्रदर्शन होता है तो सबसे पहले दिमाग में जंतर-मंतर आता है क्योंकि अक्सर लोग यहां इकट्ठा होकर प्रदर्शन करते हैं. लेकिन आज धरनों के लिए जाना जाने वाला जंतर-मंतर एक जमाने में समय देखने और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति जानने के लिए इस्तेमाल होता था. भारत में सिर्फ दिल्ली ही नहीं बल्कि और चार शहरों में जंतर-मंतर मौजूद हैं. इनमें जयपुर, उज्जैन, वाराणसी और मथुरा शामिल है. लेकिन मथुरा का जंतर-मंतर नष्ट हो चुका है. दिल्ली, जयपुर, उज्जैन और वाराणसी में से जयपुर में सबसे बड़ा, और संरक्षित जंतर-मंतर है. वहीं, दिल्ली का जंतर-मंतर सबसे पुराना है. 

क्या हैं जंतर मंतर?
जंतर-मंतर का नाम संस्कृत शब्द यंत्र और मंत्र से आया है. यंत्र का मतलब होता है कोई उपकरण यानी डिवाइस और मंत्र का मतलब गणना यानी कैल्कयूलेशन, तो इसका मतलब हुआ गणना करने वाला उपकरण. जंतर मंतर खगोलीय वेधशालाएं हैं, जो पत्थर और संगमरमर से बने विशाल उपकरणों से भरी हुई हैं, इन उपकरणों का इस्तेमाल करके ज्योतिष ग्रहण की भविष्यवाणी करते हैं, या सितारों और ग्रहों की स्थिति का निरीक्षण करते हैं. 

आज भले ही जंतर मंतर सिर्फ टूरिस्ट स्पॉट्स बनकर रह गए हैं लेकिन एक समय था जब ये पत्थर की संरचनाएं न सिर्फ कार्यात्मक थीं; बल्कि बहुत सुंदर भी थीं. खासकर जिन लोगों तो वास्तुकला, इतिहास और खगोल विज्ञान में रुचि हो उनके लिए ये असाधारण जगहें थीं.  जयपुर के जंतर मंतर को साल 2010 में UNESCO World Heritage Site घोषित किया गया था. 

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जयपुर का जंतर मंतर (फोटो: विकिपीडिया)

जयपुर के राजा ने बनवाए जंतर मंतर 
दिलचस्प बात यह है कि इन सभी शहरों के जंतर-मंतर के निर्माण एक ही इंसान ने करवाए हैं. जी हां, जयपुर के महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय ने इन सभी जंतर-मंतर का निर्माण करवाया है. औरयह सिर्फ कोई शौक के लिए नहीं था बल्कि वह भारतीय, इस्लामी और यूरोपीय खगोल विज्ञान के छात्र थे. उनका मुख्य लक्ष्य खगोलीय डेटा की सटीकता में सुधार के लिए अपने ज्ञान का उपयोग करना था. वह ऐसे उपकरण बनाना चाहते थे जो यूरोप में इस्तेमाल होने वाले पीतल के उपकरणों को टक्कर दे सकें, उनका मानना ​​था कि भारत की जलवायु के हिसाब से पत्थर और चिनाई का काम ज्यादा अनुकूल रहेगा. 

दिल्ली का जंतर मंतर साल 1724 में बनवाया गया था. जंतर मंतर का उपयोग खगोलीय स्थितियों को नग्न आंखों से देखने के लिए किया जाता था, जो टॉलेमिक स्थितिगत खगोल विज्ञान यानी भूकेन्द्रित प्रणाली की परंपरा का एक हिस्सा था. यह 18 वीं शताब्दी के समाज में एक आम प्रथा थी. हर एक जंतर मंतर में कई अविश्वसनीय उपकरण बने हैं. हर एक उपकरण को एक विशिष्ट खगोलीय कार्य को पूरा करने के लिए डिज़ाइन किया गया है.

राम यंत्र (फोटो: विकिपीडिया)

जैसे दिल्ली के जंतर मंतर की बात करें तो लाल रंग के इस स्मारक में 13 वास्तुशिल्प खगोल विज्ञान उपकरण शामिल हैं जिनका उपयोग खगोलीय तालिकाओं को चार्ट करके सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों के समय और चाल की भविष्यवाणी करने के लिए किया जा सकता है. जंतर मंतर के ज्यामितीय आकृतियों के अद्भुत संयोजन ने दुनिया भर के वास्तुकारों, कलाकारों और कला इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित किया है.

दिल्ली में जंतर मंतर में इन चार उपकरण को जरूर देखें:

  • राम यंत्र, जिसका उपयोग खगोलीय पिंडों का निरीक्षण करने के लिए किया जाता है.
  • सम्राट यंत्र, पृथ्वी की धुरी के समानांतर खड़ा है, और एक बड़ी घंटे की धूपघड़ी है जो समय बताने में मदद करती है.
  • जय प्रकाश यंत्र, दो विस्तृत अर्धगोलाकार धूपघड़ी हैं और इनका उपयोग तारों की स्थिति को चिह्नों के साथ संरेखित करने के लिए किया जाता है.
  • मिश्र यंत्र, जो पांच यंत्रों का मिश्रण है. वर्ष के सबसे छोटे और सबसे लंबे दिनों को निर्धारित करने के लिए मिश्र यंत्र का उपयोग किया जाता है.