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Varanasi Trip: कारीगरी से लेकर धर्म-अध्यात्म तक, दुनिया के सबसे पौराणिक शहर में मिलेगा मन को सुकून

अगर आप दिल्ली-NCR में रहते हैं और वीकेंड पर कहीं जाना चाहते हैं तो अपने वीकेंड के साथ एक-दो दिन की छुट्टी लें और घूम आएं वाराणसी. यहां काशी विश्वनाथ के साथ-साथ और भी बहुत कुछ है जो आपको दुनिया के किसी और कोने में देखने को नहीं मिलेगा. आज ही करें ट्रिप प्लान.

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वाराणसी दुनिया के सबसे पुराने और पवित्र शहरों में से एक है. वाराणसी उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 300 किमी दूर है. प्राचीन काल में वाराणसी को काशी के नाम से जाना जाता था. वाराणसी वरुणा और अस्सी नदी के बीच स्थित है. वरुणा और अस्सी नदी के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा. इसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है. काशी को भगवान भोलेनाथ की नगरी कहा जाता है. भगवान विश्वनाथ काशी के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं. काशी में लोग अपने अंतिम समय में आते हैं क्योंकि कहा जाता है कि यहां मोक्ष की प्राप्ति होती है. इसीलिए लोग यहां जीवन और मृत्यु के चक्र से मुक्ति पाने के लिए आते हैं.

इसके अलावा, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक समृद्धि का अनुभव करने के लिए हर साल लाखों तीर्थयात्री और पर्यटक आते हैं. अगर आप धर्म में बहुत नहीं मानते हैं तब भी आपके लिए बनारस में ऐसा बहुत कुछ है जो आप देख सकते हैं. काशी, बनारस या वाराणसी जैसे नामों से जाना जाने वाला यह शहर भारत के बेस्ट ट्रेवल डेस्टिनेशन्स में से एक है.

सबसे दिलचस्प बात यह है कि वाराणसी घूमने के लिए आपको ज्यादा लंबी छुट्टी की जरूरत नहीं पड़ती है बल्कि तीन दिन में भी आप इस शहर को  घूम सकते हैं. साथ ही, वाराणसी की दूसरे शहरों और राज्यों से अच्छी कनेक्टिविटी है. आप बस, ट्रेन या फ्लाइट या अपनी पर्सनल गाड़ी से वाराणसी आ सकते हैं. आपको सिर्फ यह देखना होगा कि आप किस शहर से आ रहे हैं और वहां से आपके लिए सुविधाजनक ट्रांसपोर्टेशन क्या रहेगा. 

आज हम आपको बता रहे हैं कि आप वाराणसी में तीन दिनों के ट्रिप में क्या-क्या कर सकते हैं. 

घाटों से कर सकते हैं शुरुआत 
वाराणसी में 80 से ज्यादा घाट हैं. वाराणसी की आत्मा इसके घाटों पर बसती है, जो चौबीसों घंटे जीवन से गुलजार रहते हैं. अपने पापों को धोने के लिए सुबह-सुबह पवित्र स्नान करने वाले लोग, अनुष्ठान करने वाले पुजारी, चौबीसों घंटे होने वाले दाह संस्कार और ध्यान और योग का अभ्यास करने वाले लोग, हर कोई आपको यहां दिखेगा. और इस सबके बीच आम बनारसी दिखेंगे जो अपना दैनिक काम कर रहे होते हैं. 

ज्यादातर घाटों पर वैसे तो स्नान और पूजा समारोहों होते हैं; सिर्फ दो घाट - मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र - को विशेष रूप से दाह संस्कार स्थलों के रूप में इस्तेमाल किया जाता है. आपको शाम की गंगा आरती के लिए दशाश्वमेध घाट, सुबह की गंगा आरती के लिए अस्सी घाट जाना चाहिए. क्योंकि बनारस जैसी गंगा आरती आपको और कहीं नहीं देखने को मिलेगी. 

गंगा में नाव की सैर 
वाराणसी में गंगा में नाव की सवारी का मजा ही कुछ और है. खासकर कि सूर्योदय के समय. गंगा नदी वाराणसी का मूल है और यहीं जीवन और मृत्यु का मिलन होता है और वाराणसी की सुंदरता को नाव से सबसे अच्छी तरह से देखा जा सकता है. सूर्योदय और सूर्यास्त के समय नदी और घाट सुनहरी रोशनी में चमकते हैं. 

वाराणसी के मंदिर हैं खास 
लगभग 3,000 मंदिरों और धार्मिक स्थलों के साथ, वाराणसी को अक्सर मंदिरों के शहर के रूप में जाना जाता है. सबसे प्रसिद्ध मंदिर हैं काशी विश्वनाथ, भारत माता मंदिर, संकट मोचन मंदिर, काल भैरव मंदिर, दुर्गा मंदिर, मृत्युंजय महादेव मंदिर, अन्नपूर्णा देवी मंदिर और तुलसी मानस मंदिर. अगर वाराणसी भारत की आध्यात्मिक राजधानी है, तो काशी विश्वनाथ मंदिर इसका सबसे अनमोल रत्न है और, काशी विश्वनाथ कॉरिडोर के उद्घाटन के बाद यह और अधिक लोकप्रिय हो गया है. गंगा नदी के पश्चिमी तट पर स्थित, यह भारत भर में फैले बारह सबसे पवित्र ज्योतिर्लिंगों या शिव पूजा के पवित्र केंद्रों में से एक है. 

वर्ल्ड फेमस है यहां का स्ट्रीट फूड 
अगर आप फूडी हैं तो भी आपको बनारस जरूर जाना चाहिए. इस शहर की तरह ही, यहां का खाना भी लोगों का दिल जीत लेता है. मारवाड़ी व्यापारियों और आस-पास के राज्यों के लोगों ने भी स्थानीय व्यंजनों में अपना क्षेत्रीय स्पर्श जोड़ा है. शाकाहारी व्यंजन मुख्य रूप से देसी घी में तैयार किए जाते हैं, और ज्यादातर वाराणसी मिठाइयों का आधार दूध और घी होता है. वाराणसी की वर्ल्ड फेमस डिशेज में शामिल हैं - टमाटर चाट, अल्लू-टिक्की, दही-चटनी वाले गोल गप्पे, छेना दही वड़ा, कचौड़ी सब्जी, ठंडाई और लस्सी, बनारसी पान, बाटी चोखा, चूड़ा मटर, चाय-बन, बनारसी मारवाड़ी थाली और मलइयो. हालांकि, मलइयो सिर्फ सर्दियों में दो महीने तक परोसी जाती है. इन सबके अलावा और भी बहुत कुछ है जो आप बनारस में खा सकते हैं. 

बनारसी साड़ी से लेकर गुलाबी मीनाकरी तक 
वाराणसी में बनारसी सिल्क की साड़ियां, दुपट्टों स लेकर हाथ की कारीगरी बहुत ही मशहूर है. यहां पर आपको लकड़ी, मेटल और कांच आदि से बनी एक से एक सुंदर हैंडीक्राफ्ट मिल जाएंगे. आप वाराणसी में ठठेरी बाज़ार (पीतल के लिए), या ज्ञान वापी और गोदौलिया में विश्वनाथ गली हैं, जहां मंदिर बाज़ार (बनारस रेशम ब्रोकेड साड़ी और आभूषणों के लिए) है. आप  क्रिस्टल और पत्थर के शिवलिंग, गुलाबी मीनाकारी, रंगीन कांच के मोती, रुद्राक्ष माला, लकड़ी के खिलौने और बांसुरी सहित कई तरह के हैंडीक्राफ्ट यहां से ले सकते हैं. हालांकि, आपको यहां पर मोल-भाव अच्छे से करना पड़ेगा. 

सारनाथ है अध्यात्म का केंद्र 
बनारस शहर के शोर-शराबे के विपरीत, सारनाथ अपने शांतिपूर्ण माहौल के साथ एक अलग दुनिया जैसा लगता है. वाराणसी से 13 किमी दूर स्थित, यहां पहुंचने में लगभग 45 मिनट से 1 घंटे का समय लगता है. सारनाथ विश्व स्तर पर बौद्ध धर्म के लिए चार सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थलों में से एक है. दुनिया भर के बौद्धों के लिए इसका विशेष अर्थ है क्योंकि यह वह स्थान है जहां बौद्ध धर्म का जन्म हुआ था. 

खास है बनारस हिंदू विश्वविद्यालय 
1919 में स्थापित इस विश्वविद्यालय ने देश को कई प्रसिद्ध वैज्ञानिक, विद्वान और कलाकार दिए हैं. यहां तक ​​कि इसके परिसर का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व भी है. बीएचयू परिसर के अंदर, आप नए विश्वनाथ मंदिर और पुरातत्व संग्रहालय, भारत कला भवन का दौरा कर सकते हैं. विश्वविद्यालय पूरे साल सुबह 10 बजे से शाम 6 बजे के बीच पर्यटकों के लिए खुला रहता है. 

आपको यूनिवर्सिटी के सामने सड़क के किनारे सभी प्रकार के भोजनालय और स्टॉल मिलेंगे जिनमें स्वादिष्ट स्ट्रीट फूड जैसे कचौड़ी, चाट, समोसा, पाओ भाजी, बर्गर, नूडल्स, पिज्जा, डोसा, पकौड़े और अन्य सभी चीजें परोसी जाएंगी. इसके अलावा आप बनारस में रानी लक्ष्मीबाई की जन्मस्थली, संत रविदास पार्क, जंतर-मंतर, नेपाली मंदिर आदि घुमना न भूलें. 

City of Music है बनारस 
भारत की आध्यात्मिक राजधानी, वाराणसी, "संगीत नगरी" भी है. 2015 में, वाराणसी शहर को यूनेस्को द्वारा "संगीत का शहर" चुना गया था. इसलिए बनारस के संगीत सुरों का अनुभव किए बिना आपकी यात्रा अधूरी होगी. यह शहर अपने संगीत - स्वर और वाद्य दोनों के लिए प्रसिद्ध है. शहर में संगीत की विरासत पौराणिक साहित्य से मिलती है, जिसमें संगीत के विकास का श्रेय शिवजी को दिया जाता है. लेकिन यह विभिन्न काकाशी के राजाओं के समय के दौरान था जिन्होंने संगीत को संरक्षण दिया और बनारस घराने के विकास में मदद की. 

शहर में घराना व्यवस्था 600-700 साल पहले शुरू हुई थी. बनारस घराने की शुरुआत करने वाले संगीतकार लखनऊ, आज़मगढ़, भागलपुर और समस्तीपुर जैसे स्थानों से आए थे. इन घरानों ने प्रतिष्ठित सितार वादक रविशंकर, शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खान, पंडित किशन महाराज, राजन-साजन मिश्रा और गायिका गिरिजा देवी जैसे कई उल्लेखनीय संगीतकार दिए हैं. 

कब आ सकते हैं बनारस 
अक्टूबर से मार्च तक बनारस घूमने का बेस्ट टाइम होता है. इस समय यहां गर्मी नहीं होती है. साथ ही, वाराणसी में रूकने की कोई समस्या नहीं है. आपको पांच सितारा होटलों से लेकर बजट गेस्टहाउस तक, अनगिनत विकल्प मिलेंगे. अगर आप वाराणसी जा रहे हैं, तो गंगा नदी के तट के आसपास कुछ जगह देखें.