दुनिया भर में नॉन-वेजिटेरियन फूड पसंद करने वालों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अब इसी को देखते वैज्ञानिकों ने वेजिटेबल-बेस्ड मीट बनाया है.
इसका टेस्ट एकदम मीट जैसा होगा. लोगों की बढ़ती मांग को देखते हुए मीटलेस मीट को बाजार में लाया जा रहा है.
रिटेल ब्रोकिंग कंपनी निर्मल बंग द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार, भारतीय बाजार में ये प्लांट बेस्ड मीट अगले तीन साल में 500 मिलियन डॉलर तक बढ़ सकता है.
ये प्लांट-बेस्ड मीट केवल शाकाहारियों के लिए नहीं हैं. इंडस्ट्री के दो बड़े नाम इम्पॉसिबल फूड्स और बियॉन्ड मीट- के 10 में से नौ से अधिक उपभोक्ता मांस खाते हैं.
लेकिन इस मीट को खरीदने से पहले लोग ध्यान रखें कि इसमें बड़ी मात्रा में सोडियम होता है, साथ ही इसमें उतना ही फैट और कैलोरी होती है जितनी असली मीट में.
कई रिसर्च के मुताबिक, मीटलेस मीट पर्यावरण के लिहाज से भी मीट से बेहतर है.
कई मीटलेस मैन्युफैक्चरर इस बात का खुलासा नहीं करते हैं लेकिन शोध से पता चलता है कि मीट की तुलना में ये मीटलेस मीट कम ग्रीनहाउस गैस उत्पन्न करते हैं.
लेकिन इसे मीट ही क्यों नहीं कहा गया? दरअसल, इसे ‘मीट’ कहा जा सकता है या नहीं यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे कहां बेचे जा रहे हैं.
अमेरिकी ने प्लांट-आधारित कंपनियों को अपने प्रोडक्ट लेबल पर ‘मीट’ शब्द का उपयोग करने से प्रतिबंधित कर दिया है. उनका कहना है कि वे नहीं चाहते कि गलती से भी उपभोक्ताओं को नकली मांस खरीदने के लिए बरगलाया जाए.
भारत में सबसे बड़े एफएमसीजी ब्रांड जैसे कि आईटीसी और टाटा कंज्यूमर प्रोडक्ट अब पूरी तरह से प्लांट-बेस्ड मीट बेचते हैं.
इतना ही नहीं बल्कि 2020 में इसकी बिक्री 7 बिलियन डॉलर तक बढ़ गई, और ब्लूमबर्ग की भविष्यवाणी के मुताबिक 2030 तक बाजार 74 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा.