भारत में मिठाइयों पर चांदी का वरक़ लगाने का रिवाज सदियों पुराना है. पहले जमाने में सिर्फ चांदी ही नहीं सोने के वरक़ का भी इस्तेमाल होता था.
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लेकिन सवाल है कि आखिर मिठाई के ऊपर वरक़ लगाने की जरूरत क्या है और क्या इस वरक़ को खाना हमारी सेहत के लिए ठीक है?
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दरअसल, वरक़ सिर्फ व्यंजनों को सजाने के लिए नहीं होते हैं बल्कि इनके तार आयुर्वेद से जुड़े हैं. आयुर्वेदिक ग्रंथों के अनुसार, चांदी खाने को शुद्ध करने का काम करती है और वरक़ खाने की शेल्फ-लाइफ भी बढ़ाता है.
साथ ही, मॉडर्न साइंस के मुताबिक, चांदी में एंटीबैक्टीरियल प्रॉपर्टीज होती हैं जो मेडिसिनल हो सकती हैं.
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बताते हैं कि मुगल काल के दौरान इसकी उत्पत्ति मानी जाती है और वरक़ मिठाइयों पर इसलिए लगाया जा है ताकि इन्हें किसी भी तरह के मक्खी-मच्छर से बचाया जा सके.
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यह शाही दरबार की सुरक्षा के लिए भी काम करता था क्योंकि वे आसानी से देख सकते थे कि भोजन के साथ किसी भी तरह से छेड़छाड़ की गई है या नहीं.
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परंपरागत रूप से वरक़ चांदी के कारीगर बनाते थे, जो असली चांदी को हाथ से कूटकर 1/8,000 मिलीमीटर पतली चादरें बनाते थे. फिर इन शीटों को कागज पर रख दिया जाता था और फिर मिठाई पर ही लगाया जाता था.
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हालांकि, अब बहुत से लोग चांदी की जगह एल्यूमिनियम का वरक़ भी मिलावट के साथ लगा देते हैं. और यह एल्यूमिनियम का वरक़ सेहत के लिए हानिकारक हो सकता है.
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इसलिए मिठाई खरीदते समय आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए की मिठाई पर लगे वरक़ में मिलावट न हो.