ट्राई करें ये अलग-अलग कबाब, देखते ही आ जाएगा मुंह में पानी

(Photos: Pinterest/Youtube )

टुंडे कबाबी के गलौटी कबाब: मुलायम, रसीली, मुंह में घुल जाने वाली पैटी जैसे लखनऊ के कबाबों को इनका नाम निर्माता हाजी मुराद अली के नाम पर मिला है. उनका केवल एक हाथ था और इसलिए उन्हें लोग टुंडे कहते थे. इसी नाम पर इस जगह का नाम टुंडे कबाबी पड़ गया.

बिहारी कबाब: बिहारी कबाब का स्वाद देहाती होता है. इनमें मसाले ज्यादा नहीं होता हैं बल्कि ये खुली आंच में भुने हुए मांस के टुकड़े होते हैं. मसालों का उपयोग सिर्फ मांस को मैरीनेट करने और उसे नरम बनाने के लिए किया जाता है. कहते हैं कि इसकी उत्पत्ति अरब और तुर्की आक्रमणकारियों के शिविरों में हुई थी जो अपनी तलवार की धार पर मांस के टुकड़े तिरछा करके भूनते थे. 

काकोरी कबाब: काकोरी न केवल 1925 के प्रसिद्ध काकोरी षडयंत्र के लिए, बल्कि स्वादिष्ट कबाब के लिए भी जाना जाता है. उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर के नाम से ही यहां के कबाब प्रसिद्ध हैं. काकोरी कबाब अवधी व्यंजनों के सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है और अपनी नरम बनावट और सुगंध के लिए जाने जाते हैं. 

चपली कबाब: प्याज, टमाटर, अंडे और अनार के बीज का उपयोग करके मांस कीमा बनाया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति उत्तर पश्चिमी भारत, अब पाकिस्तान में हुई थी. इसकी उत्पत्ति पश्तून व्यंजनों से हुई है और इसके सपाट दिखने के कारण इसे चपली कहा जाता है.

कलमी कबाब: यह एक लोकप्रिय भारतीय कबाब है जो चिकन ड्रमस्टिक्स को मैरीनेट करके और तंदूर में भूनकर बनाया जाता है. मसाले, दही और पुदीना सामग्री का हिस्सा हैं.

रेशमी कबाब: इसमें निश्चित रूप से बहुत अधिक मुगल प्रभाव है जिसे खाना पकाने की प्रक्रिया में देखा जा सकता है. इसमें बहुत ज्यादा क्रीम और काजू का उपयोग किया जाता है. यह बोनलेस चिकन से बनता है. 

शामी कबाब: भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में एक लोकप्रिय कबाब, यह मांस, छोले और अंडे के साथ बनाया जाता है. नाश्ते के रूप में खाया जाने वाला कबाब मुगल काल से चला आ रहा है जब सीरियाई रसोइयों ने सम्राट की रसोई में इसका आविष्कार किया था. बिलाद-अल शाम सीरिया का पुराना नाम था.

शिकमपुर कबाब या पत्थर के कबाब: हैदराबाद का यह कबाब स्थानीय और विदेशी सामग्रियों के संयोजन का बेहतरीन उदाहरण है. मांस के प्रति मुगलों के प्रेम को आंध्र प्रदेश के गर्म और तीखे मसालों के साथ मिलाकर इस रसीले और सुगंधित कबाब को बनाया गया. यह अनूठी तैयारी मूल रूप से  पत्थर को गर्म करके बनाई गई थी और उसी पर इसे रखा गया था. यह इसे एक अनोखा स्मोकी फ्लेवर देता है.

सुतली कबाब: इसका नाम उस धागे (सुतली) से लिया गया है जिसका उपयोग कबाब को सींख से बांधने में किया जाता है क्योंकि मांस के टुकड़े इतने नरम होते हैं कि अगर उन्हें ठीक से न बांधा जाए तो वे नीचे गिर जाते हैं. यह बांग्लादेश में लोकप्रिय है.