नार्को से कितना अलग है पॉलीग्राफ टेस्ट
कई मामलों में आरोपी से सच उगलवाने के लिए पुलिस पॉलीग्राफ टेस्ट या नार्को टेस्ट कराने की मांग करती है.
पॉलीग्राफ एक लाई डिटेक्टर डिवाइस है जिसे किसी व्यक्ति के शरीर से लगाया जाता है और वह व्यक्ति एक ऑपरेटर से सवालों का जवाब देता है.
पॉलीग्राफ टेस्ट कराने वाले शख्स के शरीर में चार से छह सेंसर लगे होते हैं. पॉलीग्राफ एक मशीन है जो चलती ग्राफ की एक पट्टी सेंसर से कई संकेतों को रिकॉर्ड करती है.
टेस्ट के दैरान व्यक्ति से सवाल किए जाते हैं और उसके जवाब देते समय उस व्यक्ति की सांस लेने की दर, बीपी और पसीना आदि रिकॉर्ड किए जाते हैं.
पॉलीग्राफ टेस्ट या लाइ डिटेक्टर टेस्ट में व्यक्ति की फिजिकल एक्टिविटी जैसे, हार्टबीट, ब्रीदिंग और पसीना को नोट किया जाता है.
वहीं, नार्को टेस्ट में व्यक्ति को पहले सोडियम पेंटोथल दवा का इंजेक्शन दिया जाता है. जिससे वह लगभग बेहोश की हालत में आ जाता है लेकिन व्यक्ति का दिमाग काम करता रहता है.
नार्को टेस्ट तभी किया जाता है जब वह शख्स मेडिकली फिट होता है. व्यक्ति को हिप्नोटिक सोडियम पेंटोथल का इंजेक्शन लगाया जाता है, जिसे थियोपेंटोन के नाम से भी जाना जाता है.
दोनों टेस्ट में अपराधियों के बचने की पूरी संभावना होती है. कई शातिर अपराधी अपने भावों, हार्ट रेट को कंट्रोल रखते हुए भी झूठ बोल लेते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक आरोपी पर नार्को-एनालिसिस, पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग टेस्ट अवैध हैं. हालांकि आपराधिक मामलों में अनुमति दी जा सकती है.