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वैसे तो जन्म लेते ही शिशु में देखने की क्षमता आ जाती है लेकिन इसे पूरी तरह से विकसित होने में समय लगता है. जन्म के तुरंत बाद बच्चे हर रंग को नहीं देख पाते हैं.
जन्म के दौरान बच्चे 8 से 10 इंच दूर रखी चीजों को अच्छे से देख पाते हैं. इस चरण में बच्चे आंखों को घुमाकर एक चीज से दूसरी चीज को देखने में सक्षम नहीं होते हैं.
जन्म के दौरान बच्चे के दिमाग और आंखों की नसें विकसित हो रही होती हैं वो काला, सफेद और ग्रे रंग आसानी से देख पाते हैं. जैसे-जैसे बच्चे की आंखों का रेटिना बनता है, वैसे-वैसे बच्चे की आंखों की रौशनी तेज होती जाती है.
जन्म से दो महीने तक बच्चे को धुंधला नजर आता है. इस चरण में बच्चों का ध्यान अपनी तरफ लाने के लिए ब्राइट चीजों का इस्तेमाल भूल कर भी नहीं करें.
बता दें कि जन्म के कुछ हफ्ते बाद बच्चे की आंखें पूरी तरह से खुलने लगती हैं. इस दौरान बच्चे की आंखों का प्यूपिल विकसित हो रहा होता है और आंखों में ज्यादा लाइट जाती है.
2 से 4 महीने की उम्र में बच्चे कई रंग देखने और उसमें अंतर करने लगते हैं. बच्चों में रंग को देखने की क्षमता धीरे-धीरे बढ़ने लगती है. बच्चे चीजों की दूरी और नजदीकी को समझने में सक्षम हो जाते हैं.
4 से 8 महीने की उम्र में बच्चे की आंखों में रंग देखने की क्षमता बन जाती है. बच्चा घर की चीजों और चेहरे को पहचानने लगता है. इस महीने में बच्चे की आंखों की दृष्टि एक व्यस्क की तरह हो जाती है.
9 से 12 महीने की उम्र में बच्चे की आंखों का रंग जैसा होगा, वैसे ही उसे अपने आसपास के रंग नजर आएंगे. बच्चा इस स्टेज में गहराई से देखने और रंग को समझने लगता है. इस स्टेज में बच्चे दूर की चीजों को देखने लगेगा और दूर की चीजों में अंतर समझने लगेगा.
1 से 2 साल के बीच में बच्चे की आंखों और हाथ का तालमेल बनता है. इस स्टेज में बच्चा अलग-अलग चीजों को देखकर समझने की कोशिश करता है. आपकी बात भी ध्यान से सुनने लगत है. बच्चे की आंखों का चेकअप 1 से 2 साल के बिच ही करवाना चाहिए और कोई समस्या होने पर तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए.