इस कीड़े के बिना नहीं तैयार हो सकती रेशम की साड़ियां

सिल्क से बनें कपड़े और अन्य वस्तुएं सबके मन को भाती है. लेकीन क्या आप जानते हैं कि सिल्क बनता कैसे है?

हर मौके पर आपको क्लासी लुक देने वाली ये सिल्क की साड़ियां बनती कैसे हैं, आपने कभी सोचा है? आइए जानें.

दरअसल सिल्क यानी रेशम फाइब्रोइन से बनता है. यह फाइब्रोइन एक कीड़े से मिलता है.

इस कीड़े को रेशम कीट कहते हैं. इसका वैज्ञानिक नाम Bombyx Mori भी है.


फाइब्रोइन इस कीड़े की ज़िंदगी का सबसे बड़ा जंजाल होता है क्योंकि इसकी वजह से उसे अपनी जान से हाथ धोने पड़ते हैं.

रेशम के कीड़े की ज़िंदगी महज़ दो या तीन दिन की होती है. इस बीच जब भी वह संबंध बनाते हैं तो फीमेल रेशम वर्म 300 से 400 अंडे देती है.

करीब दस दिन के अंदर हर अंडे से एक लार्वा जन्म लेता है जिसे कैटरपिलर कहा जाता है. इसके बढ़ने की प्रोसेस शुरू होती है और करीब 30 से 40 दिन में यह बड़ा और लचीला हो जाता है. 

बड़ा होने के बाद यह कीड़ा खुद के बचाव के लिए अपने इर्द-गिर्द एक लिक्विड छोड़ता है. इसकी खासियत यह होती है कि हवा के संपर्क में आने पर यह एक मज़बूत धागा बन जाता है.

इसकी लंबाई करीब 1000 मीटर बताई जाती है. यह एक चिड़िया के घोंसले की तरह उस कीड़े के लिए एक घर या महफूज़ जगह का काम करता है.

इसे कोया या कुकून कहा जाता है. कुकून के अंदर सुरक्षित ये कीड़े के लार्वा, प्यूपा में बदल जाते हैं.

अब 12 से 15 दिन में ये प्यूपा बड़े होकर रेशम वर्म बन जाते हैं. रेशम वर्म बनने के बाद इनके शरीर से एक एल्कालाइन लिक्विड निकलता है.

यह लिक्विड कुकून को एक तरफ से काट देता है ताकि कीड़ा बाहर निकल सके. इस वजह से रेशम का धागा टूट जाता है.

इसी धागे को टूटने से बचाने के लिए कुकून को उबलते पानी में डाला जाता है ताकि रेशम को सही ढंग से निकाला जा सके.

इससे कीड़े की मौत हो जाती है और रेशम को उससे अलग कर आगे की प्रोसेस के लिए भेज दिया जाता है.