शादी में कन्यादान को क्यों कहा जाता है महादान, जानें महत्व
By: Shivanand Shaundik
हिंदू समाज में शादी से जुड़ी कई प्रथाएं हैं, लेकीन कन्यादान की प्रथा को विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण माना जाता है.
ऐसा माना जाता है कि जब विवाह के दौरान कन्या का पिता विधि-विधान के साथ कन्यादान की रस्म को निभाते हुए अपनी बेटी का हाथ वर को सौंपता है तो बेटी के ससुराल और मायके दोनों का ही भाग्य अच्छा बना रहता है.
इसी वजह से यह रस्म महत्वपूर्ण और आवश्यक मानी जाने लगी और इसे महादान के रूप में देखा जाने लगा.
विवाह के समय वर और वधु को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का रूप माना जाता है.
ऐसे में लड़की का पिता अपनी लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री को वर पक्ष को सौंप देता है. इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है.
यदि कोई लक्ष्मी का दान करता है तो वह अपनी सुख समृद्धि का दान भी कर देता है तो इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है.
कन्यादान की प्रथा अलग जगह पर अलग तरीके से निभाई जाती है. आमतौर पर इस प्रथा में वधू की हथेली को एक कलश के ऊपर रखा जाता है.
फिर कन्या का पिता वर की हथेली पर अपनी बेटी का हाथ रखता है उसके ऊपर बाद फूल, गंगाजल और पान के पत्ते रखकर मंत्रों का उच्चारण किया जाता है और हल्दी से कन्या के हाथ उसके माता-पिता पीले करते हैं.
मन्त्रों के उच्चारण के साथ माता-पिता अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य की कामना करते हैं और हमेशा ख़ुशहाल जीवन की कामना करते हैं.
आज के समाज में कन्यादान भले ही कितना महत्वपूर्ण क्यों न हो, लेकिन एक पिता के लिए यह एक भावुक क्षण ही होता है क्योंकि वो अपने कलेजे के टुकड़े को दूसरे हाथों में सौंप देता है.