अन्ना हजार का गांव रालेगण सिद्धि देश के लिए वाटर मॉडल है. रणनीति बनाकर गांव ने जल संकट का समाधान निकाला और पर्यावरण को भी सुरक्षित किया.
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एक समय ऐसा था कि गांव में पानी की किल्लत थी. 1975 में गांव में अकाल पड़ा. आलम ये था कि 15 से 20 फीसदी लोग एक समय का खाना खाकर ही दिन काट रहे थे.
1975 में अन्ना हजारे सेना से गांव लौटे तो हालत खराब थी. लोग नशे के डूबे थे. ज्यादातर लोगों ने गांव छोड़ दिया था.
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अन्ना हजारे से गांव की बदहाली के लिए जल संकट को जिम्मेदार माना और उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए मैदान उतरे.
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गांव में सीढ़ीदार खेत बनाए गए. 4 लाख पेड़ लगाए गए. पुराने Percolation Tank की मरम्मत कराई गई. इसके पानी से 700-800 एकड़ जमीन की सिंचाई होने लगी.
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31 नाला बांध बनाए गए. छोटे-छोटे बांधों की वजह से बारिश का पानी जमा होने लगा. जिससे मिट्टी भी उपजाऊ हो गई.
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गांव में बिजली लाने के लिए पवन चक्की, सौर ऊर्जा और बायोगैस का इस्तेमाल किया गया. पीने के पानी के लिए बोरवेल बनाए गए.
आज गांव की 80 फीसदी जमीन सिंचित है और हर साल दो फसलें उगाई जाती हैं.
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वाटरशेड मैनेजमेंट की वजह से गांव मे दूध उत्पादन में 4 गुना बढ़ोतरी हुई. लोग साक्षर होने लगे.
गांव में शराब की दुकानों को बंद कर दिया गया. पूरा गांव नशे से दूर हो गया. गांव में नसबंदी प्रथा को भी बैन कर दिया गया.
गांव के लोगों ने श्रमदान करके स्कूल, मंदिर और दूसरे सार्वजनिक स्थानों का निर्माण किया. स्कूल में शहरी स्कूलों जैसी सुविधा है.
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