पूर्वांचल में दहशत का दूसरा नाम अतीक अहमद के गुनाहों की फाइल बहुत लंबी है.
अतीक उमेश पाल हत्याकांड समेत 150 से ज्यादा आपराधिक केसों में नामजद है. उसपर बसपा विधायक राजू पाल की हत्या का भी आरोप है.
प्रयागराज में जन्मे अतीक ने महज 17 साल की उम्र में ही जुर्म की दुनिया में कदम रख दिया था. 20-22 की उम्र तक आते आते अतीक अपने इलाके का बड़ा गुंडा बन चुका था.
यह वह समय था जब अतीक का डर और आतंक इलाके में फैलने लगा. इसका सीधा फायदा अतीक को यह हुआ कि उसे पुलिस और नेता दोनों का शह धीरे-धीरे मिलने लगा.
साल था 1986 और यूपी में सरकार थी वीर बहादुर सिंह की. एक केस में अतीक को पुलिस ने पकड़ लिया लेकिन थाने नहीं ले गई. लगा कि पुलिस अतीक का एनकाउंटर कर देगी. लेकिन जैसे ही एक कॉल दिल्ली से आई अतीक छूट गया.
इस घटना के बाद अतीक को एहसास हुआ कि अपराध की दुनिया में मजबूती बनाए रखने के लिए उसे सियासत का दामन थामना पड़ेगा. और बस फिर क्या था उसने राजनीति में पैठ बनाना शुरू कर दिया.
1989 का साल था जब अतीक ने पहली बार इलाहाबाद पश्चिम से विधायकी का निर्दलीय पर्चा भरा. मुकाबला पुराने गैंगस्टर चांद बाबा से था. लेकिन अतीक चुनाव में भारी पड़ा और जीत गया.
अतीक के विधायक बनने के कुछ महीने बाद ही चांद बाबा की हत्या हो गई. अब अतीक बैखोफ हो चुका था और उसका आतंक पूर्वांचल में फैलने लगा.
एक तरफ अतीक जुर्म की दुनिया में मजबूत हो चुका था दूसरी तरफ सियासत में भी उसके कदम बढ़ चुके थे. 1989, 1991, 1993, 1995 और 2002 को मिलाकर अतीक 5 बार विधायक बन चुका था.
अतीक को अब संसद जाने की तलब लगी थी. 1999 में लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. फिर साल आया 2004 जब सपा के टिकट पर फूलपुर से अतीक ने किस्मत आजमाया और चुनाव जीतकर संसद पहुंचा.
साल था 2007 जब अतीक के बुरे दिन की शुरुआत हुई. मायावती की सरकार ने अतीक को मोस्ट वांटेड घोषित कर दिया और कार्रवाई शुरू कर दी. दिल्ली से अतीक को गिरफ्तार भी कर लिया गया.
2012 में बेल पर अतीक बाहर आया और विधानसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. 2014 में फिर से एकबार अतीक को सपा से लोकसभा का टिकट मिला लेकिन वो यहां भी हार गया.
अखिलेश यादव जैसे ही सपा के अध्यक्ष बने अतीक को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया. 2017 यूपी विधानसभा चुनाव से एक महीने पहले ही उसे पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. तब से ही वह जेल में बंद है.