20 सितंबर, 1946 को कांस फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत की गई थी. कांस दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित फिल्म फेस्टिवल्स में से एक है. इस इवेंट में दुनियाभर की चुनिंदा फिल्मों और डॉक्यूमेंट्री को दिखाते हैं.
कांस का भारत से भी खास रिश्ता है और इस कड़ी की शुरुआत साल 1946 में चेतन आनंद की फिल्म नीचा नगर से किया गया था.
कांस फेस्टिवल में किसी भी फिल्म की स्क्रीनिंग बहुत मायने रखती है और यहां पर मिलने वाले अवॉर्ड्स को खूब सराहा जाता है.
इसमें सेलिब्रिटीज़ के अलावा जर्नलिस्ट और फिल्म क्रिटिक्स भी शामिल हो सकते हैं. हालांकि, इसके लिए उन्हें टिकट खरीदनी पड़ेगी, जिसकी कीमत 5 लाख रुपये से लेकर 20 लाख तक तय की गई है.
कांस फिल्म फेस्टिवल में मेहमानों के डिनर के लिए ही 3 लाख 47 हजार डॉलर, यानी 2.8 करोड रुपए खर्च किए जाते हैं.
सेलेब्स के लिए रखे गए डिनर में वाइन और शैंपेन भी सर्व होती है. पूरे कांस फेस्टिवल के दौरान करीब 18,500 बोतल वाइन और शैंपेन परोसी जाती है.
रिपोर्टर के अनुसार सेरेमनी में ज्यादातर 1990 शैटो पेट्रस वाइन सर्व की जाती है. जिसकी एक बोतल की कीमत 9390 डॉलर है, ये दुनिया की छठी सबसे महंगी वाइन है.
डिनर के अलावा दूसरे मौकों पर लगने वाली ड्रिंक्स, खाने, लेजर लाइट, फोटोग्राफ और म्यूजिक में भी 1,50,000 डॉलर यानी 1 करोड़ 23 लाख खर्च किए जाते हैं.
सबसे ज्यादा कांस फिल्म फेस्टिवल में रेड कार्पेट पर आए सेलेब्स चर्चा में रहते हैं. जिसके तीन तरफ पैपराजी और मीडिया की भीड़ रहती है. ये रेड कार्पेट 2 किलोमीटर लंबा होता है.
रेड कार्पेट के नियमों के अनुसार, सेरेमनी में पहुंचने वाली फीमेल सेलिब्रिटीज का हील्स पहनना जरूरी है. रेड कार्पेट पर हैंडबैग ले जाना सख्त मना है. यहां आने वाले सेलेब्स क्लच या हाथ में दूसरा कोई भी बैग नहीं पकड़ सकते.
रेड कार्पेट पर फोटो या सेल्फी लेने की भी सख्त मनाही है, कोई भी सेलेब रेड कार्पेट पर सिर्फ और सिर्फ पैपराजी से ही तस्वीर क्लिक करवा सकता है.
पैपराजी के लिए भी कांस फिल्म फेस्टिवल में ड्रेस कोड है. पैपराजी सिर्फ ब्लैक टक्सीडो सूट, टाई/बो और फॉर्मल शूज पहनकर ही आ सकते हैं.