दुष्यंत कुमार की मशहूर पंक्तियां
By-GNT Digital
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीअत से उछालो यारो
कहां तो तय था चरागां हर एक घर के लिए
कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए
एक क़ब्रिस्तान में घर मिल रहा है
जिस में तह-खानों से तह-खाने लगे हैं
तिरा निजाम है सिल दे जबान-ए-शायर को
ये एहतियात जरूरी है इस बहर के लिए
मस्लहत-आमेज होते हैं सियासत के कदम
तू न समझेगा सियासत तू अभी नादान है
ये लोग होमो-हवन में यकीन रखते हैं
चलो यहां से चलें हाथ जल न जाए कहीं
ये सोच कर कि दरख्तों में छांव होती है
यहा बबूल के साए में आ के बैठ गए
नजर-नवाज नजारा बदल न जाए कहीं
जरा सी बात है मुंह से निकल न जाए कहीं
वो आदमी नहीं है मुकम्मल बयान है
माथे पे उस के चोट का गहरा निशान है
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मिरा मक्सद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए