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सनातन धर्म में साधु-संतों को ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है.
साधु-संतों की वेशभूषा अलग होती है और वे भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल पड़ते हैं.
लेकिन नागा साधु कभी भी कपड़े नहीं पहनते हैं. वे कपकपाती ठंड़ में भी हमेशा नग्न अवस्था में ही रहते हैं.
नागा साधु बनने की प्रक्रिया में 12 साल लग जाते हैं, जिसमें 6 साल को महत्वपूर्ण माना गया है.
नागा साधु बनने के लिए पहले इन्हें ब्रह्मचार्य की शिक्षा प्राप्त करनी होती है. इसके बाद उन्हें महापुरुष दीक्षा दी जाती है.
बाद वे अपने परिवार और स्वंय अपना पिंडदान करते हैं. इस प्रकिया को ‘बिजवान’ कहा जाता है.
यही कारण है कि नागा साधुओं के लिए सांसारिक परिवार का महत्व नहीं होता, ये समुदाय को ही अपना परिवार मानते हैं.
नागा साधु एक दिन में 7 घरों से भिक्षा मांग सकते हैं. यदि इन घरों से भिक्षा मिली तो ठीक वरना इन्हें भूखा ही रहना पड़ता है.