जिंदगी की हकीकत है राहत इंदौरी की शायरी 

ज़ुबाँ तो खोल नज़र तो मिला जवाब तो दे मैं कितनी बार लूटा हूँ मुझे हिसाब तो दे.

लोग हर मोड़ पे रुक रुक के संभलते क्यूं है इतना डरते है तो घर से निकलते क्यूं है.

आंखों में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो.

एक ही नदी के है यह दो किनारे दोस्तो दोस्ताना ज़िन्दगी से, मौत से यारी रखो.

फूंक़ डालूंगा मैं किसी रोज़ दिल की दुनिया ये तेरा ख़त तो नहीं है की जला भी न सकूं.

कही अकेले में मिलकर झंझोड़ दूंगा उसे जहां जहां से वो टूटा है जोड़ दूगा उसे मुझे वो छोड़ गया ये कमाल है उस का इरादा मैंने किया था की छोड़ दूंगा उसे.

जा के ये कह दो कोई शोलो से, चिंगारी से फूल इस बार खिले है बड़ी तैयारी से बादशाहों से भी फेंके हुए सिक्के ना लिए हमने ख़ैरात भी मांगी है तो ख़ुद्दारी से.

नये किरदार आते जा रहे है मगर नाटक पुराना चल रहा है.

हर एक हर्फ का अन्दाज बदल रक्खा है आज से हमने तेरा नाम ग़ज़ल रक्खा है मैंने शाहों की मोहब्बत का भरम तोड़ दिया मेरे कमरे में भी एक ताजमहल रक्खा है