गणेश जी को क्यों प्रिय है मोदक... इसलिए बप्पा को प्रसाद में चढ़ाया जाता है लड्डू

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पौराणिक कथा के मुताबिक भाद्रपद माह में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणपति बप्पा का अवतरण हुआ था इसलिए हर साल इस तिथि पर गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष गणेश चतुर्थी का पर्व 7 सितंबर 2024 को मनाया जाएगा. गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है.

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गणेश जी की पूजा हो और प्रसाद में मोदक न हो, ऐसा कम ही देखने को मिलता है. दरअसल, भगवान गणेश को मोदक बहुत प्रिय है. गणपति को प्रसाद चढ़ाने की जब भी बात आती है तो लोग लड्डू ही खरीदते हैं.

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गणपति बप्पा को भले ही छप्पन व्यंजन का भोग लगा दिया जाए लेकिन बिना मोदक के वह प्रसन्न नहीं होते हैं. यही वजह है कि गणेश जी की पूजा में मोदक का भोग अर्पित किया जाता है. 

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ज्योतिषी कहते हैं कि गणपति को लड्डू का भोग लगाने मात्र से ही जीवन के सभी द्वेष और कष्ट-क्लेश दूर हो जाते हैं क्योंकि लड्डू से नौ ग्रहों को नियंत्रित किया जा सकता है.

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प्रचलित कथा के मुताबिक एक बार भगवान परशुराम और गणेश जी में युद्ध हुआ था. इसमें गणेश जी का एक दांत टूट गया. इससे गणेश जी को खाने में परेशानी होने लगी तो उनके लिए मुलायम मोदक तैयार करवाए गए. गणेश जी ने पेट भर मोदक खाए. तभी से मोदक गणपति का प्रिय व्यंजन बन गया.

एक बार गणेश जी माता अनुसुइया भोजन करा रहीं थी. वह बप्पा को खाना खिलाती ही जा रहीं थीं पर गणपति की भूख खत्म ही नहीं हो रही थी. इसके बाद माता अनुसुइया ने गणेश जी को मोदक का एक टुकड़ा खिला दिया, जिसे खाते ही गणेश जी का पेट भर गया.

मान्यता है कि गणेश जी को अगर 21 मोदक चढ़ाएं जाते हैं तो उनके साथ साथ बाकी के सभी देवी-देवताओं का भी पेट भर जाता है. इसी वजह से गणपति को भोग में मोदक चढ़ाया जाता है ताकि उनके साथ ही अन्य देवी- देवताओं का आशीर्वाद भी प्राप्त हो सके. 

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शब्दों पर गौर करें तो मोद का अर्थ खुशी या हर्ष होता है. गणेश जी हमेशा खुश रहते हैं और अपने भक्तों के कष्टों को दूर कर उनके जीवन में भी खुशी लाते हैं इसीलिए गणेश जी को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है. भक्त भी भगवान गणेश को खुश करने के लिए मोदक, जिसका अर्थ खुशी होता है का भोग लगाते हैं.

मान्यता है कि मोदक अमृत से बना है. इसको बनाने के बाद देवताओं ने एक दिव्य मोदक माता पार्वती को दिया था. गणेश जी को जब अमृत से बने दिव्य मोदक के बारे में पता चला तो उनके मन में इसे खाने की इच्छा हुई. उन्होंने माता पार्वती से मोदक प्राप्त कर उसे खाया और तभी से उन्हें मोदक प्रिय हो गया.