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गणेश चतुर्थी का पर्व 10 दिनों तक बड़े ही उल्लास और धूमधाम से मनाया जाता है. इस पर्व का मुख्य आकर्षण गणेश जी की प्रतिमा की स्थापना और विसर्जन है.
विसर्जन के दिन भक्त धूमधाम के साथ नाचते-गाते बप्पा को विदा करते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि 10 दिन की पूजा के बाद बप्पा का विसर्जिन क्यों किया जाता हैं. आइए हम आपको बताते हैं.
पौराणिक कथाओं के अनुसार वेद व्यास जी ने गणेश चतुर्थी से गणेश जी को महाभारत की कथा लगातार 10 दिनों तक लिखने के लिए कहा था.
11वें दिन जब वेद व्यास जी की आंखें खुलीं तो पाया कि गणेश जी के शरीर का तापमान काफी बढ़ा हुआ है. इसे कम करने के लिए वेद व्यास जी ने उन्हें तुरंत ठंडे पानी से स्नान कराया.
इसी कारण से भगवान गणेश की 10 दिनों तक पूजा करने के बाद उनकी प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है. इसके साथ ही एक नई शुरुआत का संकल्प भी लिया जाता है.
भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से गणेश चतुर्थी की शुरुआत होती है. इस नौ दिन की पूजा को गणेश नवरात्रि भी कहते हैं.
भगवान गणेश की प्रतिमा का विसर्जन चतुर्दशी तिथि को किया जानता है. लोगों का मानना हैं की बप्पा पुनः अपने घर कैलाश पर्वत पर लौट जाते हैं इसलिए इस दिन को अनंत चतुर्दशी भी कहते हैं.
माना जाता है कि नौ दिन की इस पूजा में बप्पा आपने भक्तों की सारे विघ्नों को हर लेते हैं और उनकी मुरादों को पूरी कर देते हैं.
अपनी मन्नतों को पूरी करने के लिए एक भोजपत्र या पीली कागज में स्वस्तिक चिह्न बनाकर लाल सियाही से ॐ गं गणपतये नम: मंत्र को लिखें. इसके बाद इसे रक्षासूत्र में बांधकर गणेश जी की चरणों में अर्पित करें और इस कागज को गणेश जी की प्रतिमा के साथ विसर्जित कर दें.