हरिशंकर परसाई आधुनिक युग के सबसे बड़े व्यंग्यकारों में से एक माने जाते हैं. इस हिन्दी दिवस पर पढ़ें भाषा की ताकत दिखाती उनकी कुछ लाइनें.
40-50 साल पहले लिखी गई इन लाइनों की कालजयी ताकत को महसूस कर सकते हैं. और हां, कभी जरूरत पड़े तो आप भी इन लाइनों को मौके बे मौके किसी पर दाग भी सकते हैं.
'दिवस कमजोर का मनाया जाता है, जैसे महिला दिवस, अध्यापक दिवस, मजदूर दिवस. कभी थानेदार दिवस नहीं मनाया जाता.'
'बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है.'
'जब शर्म की बात गर्व की बात बन जाए, तब समझो कि जनतंत्र बढ़िया चल रहा है.'
'आत्मविश्वास कई प्रकार का होता है, धन का, बल का, ज्ञान का. लेकिन मूर्खता का आत्मविश्वास सर्वोपरि होता है.'
'विचार जब लुप्त हो जाता है, या विचार प्रकट करने में बाधा होती है, या किसी के विरोध से भय लगने लगता है. तब तर्क का स्थान हुल्लड़ या गुंडागर्दी ले लेती है.'
'नारी-मुक्ति के इतिहास में यह वाक्य अमर रहेगा कि ‘एक की कमाई से पूरा नहीं पड़ता.'
'व्यस्त आदमी को अपना काम करने में जितनी अक्ल की जरूरत पड़ती है, उससे ज्यादा अक्ल बेकार आदमी को समय काटने में लगती है'
'लड़कों को ईमानदार बाप निकम्मा लगता है.'
'दुनिया में भाषा, अभिव्यक्ति के काम आती है. इस देश में दंगे के काम आती है.'