भारत में कैसे बनता है कानून? 

एक बिल बनाने की प्रक्रिया लॉ मेकर से शुरू होती है. ये वो होते हैं जिनका इरादा इस कानून को बनाने का होता है. 

लॉ मेकर इसके लिए तैयारी करते हैं और जरूरी जानकारी इकट्ठा करते हैं.

जानकारी इकट्ठा करने के बाद लॉ मेकर बिल के लिए एक प्रस्तावना लिखते हैं. ताकि इसे बिल के रूप में प्रस्तुत किया जा सके.

इस प्रस्ताव में कानून के उद्देश्य, धारणाएं, प्रावधान और दूसरी जरूरी चीजें  होती हैं.

उसके बाद, बिल को विधानसभा या राज्यसभा के सदस्य प्रस्तुत करते हैं. बिल को सदस्यों को पढ़ने और समझने के लिए सौंपा जाता है और उन्हें अधिकारिक तौर पर चर्चा और सुझाव देने का समय दिया जाता है.

चर्चा और सुझावों के आधार पर बिल में संशोधन किया जा सकता है या जरूरत नहीं लगती है तो कोई बदलाव नहीं किया जाता. 

बिल की संशोधन प्रक्रिया ज्यादातर बैठकों, विचार-विमर्श और वोटिंग से होती है.

इसके बाद इसमें सभी जरूरी संशोधन संशोधन किए जाते हैं. जिसके बाद विधानसभा या राज्यसभा इसे वोटिंग के लिए रखती है.

विधानसभा या राज्यसभा में अगर बिल को बहुमत मिलता है तो यह पारित होता है.

अगर बिल को मान्यता मिल जाती है, तो उसे संवैधानिक मंजूरी के लिए भेजा जाता है. 

आखिर में इसे देश के राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. अगर वह इसे मंजूरी नहीं देते हैं तो बिल वापस कर दिया जाता है. लेकिन मंजूरी मिलने पर ये बिल एक कानून का रूप ले लेता है.