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सियाचिन दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र है. इसकी ऊंचाई करीब 20 हजार फीट है. इस जगह पर इंडियन आर्मी के जवान तैनात हैं.
सियाचिन में कुछ ही समय में तापमान शून्य से 50 डिग्री नीचे तक चला जाता है. इतने खतरनाक मौसम में भी हजारों जवान तैनात रहते हैं.
सियाचिन में रहना बहुत ही मुश्किल है. यहां सैनिक एकसाथ चलते हैं और जवानों के पैर एक रस्सी से बंधे होते हैं, ताकि कोई साथी फिसल जाए तो ग्रुप से अलग ना हो.
जवानों के साथ 20-30 किलो का बैग भी होता है. जिसमें बर्फ काटने वाली कुल्हाड़ी, हथियार और रोजमर्रा के कुछ सामान होते हैं.
सियाचिन में तैनात जवानों के लिए खास तरह के कपड़े तैयार किए जाते हैं. जवान जो कोट पहनते हैं, उसको स्नो कोट कहते हैं.
सियाचिन में टेंट को गर्म रखने के लिए एक खास तरह की अंगीठी का इस्तेमाल किया जाता है, जिसे स्थानीय भाषा में बुखारी कहते हैं.
टेंट में लोहे के एक सिलेंडर में मिट्टी का तेल डालकर जलाया जाता है. इससे सिलेंडर गर्म हो जाता है और टेंट गर्म रहता है.
सैनिक लकड़ी की चौकियों पर स्लीपिंग बैग में सोते हैं. कभी-कभी ऑक्सीजन की कमी के चलते सोते समय ही जान चली जाती है.
सैनिकों को नहाने की मनाही होती है. दाढ़ी बनाने पर रोक है, क्योंकि चमड़ी इतनी नाजुक हो जाती है कि एक बार कट जाए तो घाव जल्दी नहीं भरता है.
इतनी बर्फ में अगर दिन में सूरज चमके और उसकी चमक बर्फ पर पड़ने के बाद आंखों में जाए तो आंखों की रोशनी जा सकती है.
सियाचिन ग्लेशियर पर एक सैनिक की 3 महीने की तैनाती होती है. उस दौरान वो सीमित दायरे में घूम सकते हैं.