हमारे देश को आजादी बहुत से लोगों की कुर्बानी से मिली है. सालों तक देश के लोगों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया.
बहुत से शहीदों के बारे में हमने बचपन से पढ़ा-सुना है जिन्होंने देश के लिए अपनी जान की बाजी लगा दी और भारत को आजादी दिलाई.
लेकिन आज बहुत से स्वतंत्रता सेनानी ऐसे हैं जिनके बारे में न तो लोगों को ज्यादा कुछ पता है न ही किताबों में इनका ज्यादा जिक्र है.
बाजी राउत 12 साल की उम्र के सबसे कम उम्र के देशभक्त बाजी राउत, जिन्हें प्यार से बाजिया कहा जाता था, ने अपनी मातृभूमि के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया.
सूर्यसेन सूर्यसेन उर्फ मास्टर दा अंग्रेजों के लिए खौफ का दूसरा नाम हुआ करते थे. बांग्लादेश में जन्मे सूर्यसेन ने युगांतर पार्टी नामक एक दल बनाया था. अंग्रेजों को धूल चटाने के लिए सूर्यसेन ने गुर्रिला युद्ध की मदद ली. 23 दिसंबर 1923 को इन्होंने चटगांव में असम बंगाल रेलवे की ट्रेजरी ऑफिस को लूट लिया था.
भिकाजी कामा भिकाजी कामा विदेशी धरती पर भारतीय ध्वज फहराने वाली पहली क्रांतिकारी थीं. एक बार लंदन की यात्रा के दौरान मैडम कामा श्यामजी कृष्ण वर्मा से मिलीं.उनसे प्रभावित हो कर मैडम कामा ने पेरिस इंडियन सोसाइटी की नींव रखी. साल 1907 ने भिकाजी कामा ने जर्मनी में अंग्रेज़ी उपनिवेशवाद के खिलाफ चर्चा की और भारतीय ध्वज फहराया था. इस झंडे को मैडम कामा के साथ-साथ विनायक दामोदर सावरकर ने बनाया था.
सेनापति बापट 1920 के दशक में, पांडुरंग महादेव बापट उर्फ सेनापति बापट गांधी जी के आंदोलन ता हिस्सा बने. उन्होंने 1921 से 1923 तक, मुलशी सत्याग्रह का नेतृत्व किया. यह उनका सत्याग्रह ही था जिसके कारण उन्हें ‘सेनापति’, अर्थात ‘कमांडर’, की उपाधि दी गई. मुलशी सत्याग्रह के कारण उनकी गिरफ़्तारी हुई और बाद में उन्हें लगभग सात साल की कैद हुई. 1931 में जेल से रिहा होने पर, उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश कांग्रेस समिति (एमपीसीसी) का अध्यक्ष बनाया गया. 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता दिवस के दिन, बापट ने पहली बार पुणे शहर में भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया था.
मातंगिनी हज़ारा 'भारत छोड़ो आंदोलन’ के समय मातंगिनी की उम्र लगभग 72 वर्ष की थीं, पर उन्होंने गांधी जी के साथ मिलकर अंग्रेजों का विरोध किया. नमक सत्याग्रह के दौरान वह गिरफ्तार भी हुईं और 6 महीने जेल में रहीं. इसके बाद हर कोई उन्हें बूढ़ी गांधी कहने लगा. देश की आजादी के लिए उन्होंने अंग्रेजों की गोली खाई और अपनी जान न्योछावर कर दी.