कर्नाटक की राजनीतिक दिशा तय करती हैं ये जातियां
कर्नाटक की जातियां राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.
दशकों से राज्य में दो प्रमुख समुदाय-लिंगायत और वोक्कालिगा सरकार गठन में अपने प्रभाव के कारण मेनस्ट्रीम की सभी पार्टियों के आकर्षण का केंद्र रहे हैं.
कई बार तो इनका प्रभाव इतना होता है कि ये चुनावों के परिणामों को भी तय करती हैं.
लिंगायत/वीरशैव समुदाय शिव के भक्त हैं. ये 12वीं सदी के संत-दार्शनिक बासवन्ना का अनुसरण करते हैं. बासवन्ना को धार्मिक कर्मकांड, पूजा और वेदों की श्रेष्ठता को खारिज करने के लिए जाना जाता है.
इन दोनों में काफी भिन्नता है. लिंगायत वीरशैवों को हिंदू धर्म का हिस्सा मानते हैं क्योंकि वे हिंदू रीति-रिवाजों का पालन करते हैं जबकि वीरशैव सोचते हैं कि ये समुदाय शिव ने बनाया था और ये एक प्राचीन धर्म है और बसवन्ना इसके संतों में से एक थे.
लिंगायतों में राज्य की आबादी का लगभग 17% शामिल है और पूरे राज्य में फैले हुए हैं.
224 विधानसभा की 70 सीटों पर लिंगायतों का दबदबा है. हालांकि, 30 या इससे ज्यादा सीटों पर बड़ी संख्या में इनकी वोट हैं.
लिंगायतों बड़े पैमाने पर उत्तरी कर्नाटक में केंद्रित हैं, खासकर बेलगावी, धारवाड़ और गडग जिलों में. साथ ही बागलकोट, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर और रायचूर में भी उनकी मजबूत उपस्थिति है.
लेकिन लिंगायतों से अलग वोक्कालिगा जिसका शाब्दिक अर्थ किसान होता है, एक पुरानी मैसूर क्षेत्र केंद्रित जाति है, जिसकी आबादी केवल तीन-चार जिलों में है.
अंग्रेजों के अधीन मैसूर राजाओं के शासन के दौरान, वोक्कालिगा खेती तक ही सीमित थे. लेकिन 1947 में स्वतंत्रता के बाद से सब बदल गया.
आज वोक्कालिगा कर्नाटक के सामाजिक-राजनीतिक जीवन में प्रमुख खिलाड़ी हैं.
2018 में, लगभग 42 वोक्कालिगा ने विधानसभा चुनाव जीता था. इनमें से 23 जेडीएस के थे.