बीदर से उत्पन्न इस धातु हस्तकला की शुरुआत 14वीं शताब्दी में हुई थी. इस कला में सफेद धातु का उपयोग किया जाता है और इसे और काला करके चांदी से जड़ा जाता है. इसे जीआई टैग मिल चुका है.
मैसूर सिल्क कर्नाटक का सबसे लोकप्रिय जीआई टैग प्रोडक्ट है. इसकी साड़ियां दुनिया की सबसे महंगी साड़ियों में से हैं.
लम्बानी कर्नाटक की एक जनजाति है. वे आमतौर पर अपने उत्पादों के साथ शहरों और कस्बों का दौरा करते हैं जिनमें संदूर लम्बानी कढ़ाई वाले उत्पाद शामिल हैं. इसे जीआई टैग मिल चुका है.
मैसूर अगरबत्ती या स्थानीय रूप से ज्ञात ऊदबत्ती फूलों, जड़ी-बूटियों, छाल, आवश्यक तेलों, जड़ों, चारकोल आदि से बनी अगरबत्ती हैं. इसमें चंदन जरूरी होता है जो राज्य के जंगलों से आता है.
मैसूर चंदन साबुन और मैसूर चंदन तेल दोनों जीआई टैग प्रोडक्ट हैं.
मैसूर पान के पत्तों का आनंद खाने के बाद लिया जाता है. ये पान के पत्ते भारत के दूसरे क्षेत्रों में उगाए जाने वाले पत्तों से अलग होते हैं.
केले की किस्म नंजनगुड रसाबाले अपने मीठे स्वाद और मध्यम आकार के लिए पसंद किए जाते हैं.
कहा जाता है कि लगभग 300 साल पहले चिकमंगलूर जिले में बाबा बुदान गिरि पहाड़ियों में पहली कॉफी बीन्स बोई गई थीं. बाद में डच और अंग्रेजों ने इस कॉफी किस्म की व्यावसायिक खेती का विस्तार किया.
कूर्ग ऑरेंज या कूर्ग मंदारिन की खेती कोडागु जिले में की जाती है. मिठास और एसिडिटी के सही मिश्रण के लिए ये संतरे दुनियाभर में फेमस हैं.
पूरे देश में आम की विभिन्न किस्में उगाई जाती हैं. कर्नाटक से अप्पेमिडी आम आता है. सालों बाद भी इसका अपना टेस्ट और बनावट रहती है.
राम रतन सिंह ने 18वीं/19वीं शताब्दी में धारवाड़ पेड़ा बनाना शुरू किया था. ये दूध से बनने वाला मीठा व्यंजन है.