क्राइम और कास्ट के कॉकटेल से हरिशंकर तिवारी ने बनाया सियासी किला

हरिशंकर तिवारी का जन्म 5 अगस्त 1935 को गोरखपुर में चिल्लूपार के टांडा गांव में हुआ था. पढ़ाई के लिए वो शहर गए.

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हरिशंकर तिवारी 1980 के दशक में गोरखपुर में छात्र राजनीति में सक्रिय रहे. इस दौरान उनके खिलाफ कई आपराधिक मामले दर्ज हुए.

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गोरखपुर में गुटबाजी के दौर में एक गुट की अगुवाई हरिशंकर तिवारी करते थे, जबकि दूसरे गुट का नेतृत्व वीरेंद्र शाही के हाथों में था.

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कहा जाता है कि एक डीएम ने हरिशंकर तिवारी को शह दी और मठ को चुनौती देने के लिए खड़ा किया था.

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तिवारी की सियासी पारी की शुरुआत साल 1985 में उस समय हुई, जब वो जेल में रहते हुए चिल्लूपार से विधायक चुने गए.

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ऐसा पहली बार हुआ था, जब कोई आपराधिक छवि का व्यक्ति जेल में रहकर विधायक चुना गया था.

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तिवारी को 6 बार विधायक और 5 बार कैबिनेट मंत्री बनने का मौका मिला. 

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कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह, मायावती और मुलायस की सरकार में तिवारी मंत्री रहे. 2007 और 2012 में हार के बाद चुनाव लड़ना बंद कर दिया.

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हरिशंकर तिवारी ब्राह्मणों के लीडर बन गए थे. गोरखपुर, आजमगढ़, मऊ, देवरिया के ब्राह्मण बाहुल इलाकों में उनकी पकड़ मजबूत थी.

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हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे भीष्म तिवारी और छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी दोनों सियासत में हैं. बड़े बेटे सांसद और छोटे बेटे विधायक रह चुके हैं.

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