वो मध्य प्रदेश में एक अभियान में गए थे और रावेरखेड़ी में आकर रुके थे. वहां उन्हें तेज़ बुखार ने जकड़ लिया, जो कई दिनों तक बना रहा और गंभीर होता चल गया.
बाजीराव प्रथम को बाजीराव बल्लाल के नाम से भी जाना था. वो मराठा साम्राज्य के सातवें पेशवा थे.
एक योद्धा के रूप में बाजीराव की क्षमता को सम्राट शाहू महाराज द्वारा विधिवत मान्यता दी गई थी और इसलिए पिता की मृत्यु के बाद उन्हें ही पेशवा बनाया गया था.
पेशवा बाजीराव को अजेय योद्धा या अपराजिता योद्धा के रूप में भी जाना जाता है. उन्होंने अपनी ज़िंदगी में जितने भी युद्ध लड़े उसमें वो कभी नहीं हारे.
मध्य प्रदेश राज्य के खरगोन ज़िल के रावेर खेड़ी में बाजीराव प्रथम की समाधि है और यही वो जगह जहां उन्होंने अपनी आख़िरी सांस ली थी.
लेकिन, जानकर हैरान होगी कि बाजीराव पेशवा प्रथम की मृत्यु (28 अप्रैल 1740) किसी लड़ाई में नहीं बल्कि बुखार की वजह से उनकी मृत्यु हुई थी.
दरअसल, वो मध्य प्रदेश में एक अभियान में गए थे और रावेरखेड़ी में आकर रुके थे. वहां उन्हें तेज़ बुखार ने जकड़ लिया, जो कई दिनों तक बना रहा और गंभीर होता चल गया.
बाजीराव प्रथम की मृत्यु के बाद रावेर खेड़ी में ही उनका समाधि स्थल बनाया गया.
ये समाधि स्थल एक क़िले जैसा है जिसके बीच में एक छत्रिनुमा आकृति बनी हुई है. यहां शिवलिंग भी है, जिसके नीचे मौजूद है बाजीराव प्रथम का अस्थि कलश.