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गुरु तेग बहादुर साहिब सिखों के नौवें गुरु थे. उनका पहला नाम त्याग मल था.
उनके पिता थे सिखों के छठे गुरु श्री गुरु हरगोबिंद साहिब और उनकी मां का नाम माता नानकी था. गुरु तेग बहादुर जी का जन्म अमृतसर के गुरु के महल में हुआ था.
गुरु तेग बहादुर जी ने धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों और सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी.
सिख धर्म ही नहीं, बल्कि सारे धर्मों के अनुयायी उनके बलिदान को बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं.
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गुरु तेग बहादुर की याद में उनके शहीदी स्थल पर एक गुरुद्वारा साहिब बना है. जिसे गुरुद्वारा शीश गंज के नाम से जाना जाता है.
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उन्होंने गुरु नानक के सिद्धांतों का प्रचार करने के लिए देश में कश्मीर और असम जैसे स्थानों की लंबी यात्रा की.
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अंधविश्वासों की आलोचना कर समाज में नए आदर्श स्थापित किए. गुरु तेग बहादुर ने आस्था, विश्वास और अधिकारी की रक्षा के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था.
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माना जाता है कि उनकी शहादत दुनिया में मानव अधिकारियों के लिए पहली शहादत थी, इसलिए उन्हें सम्मान के साथ 'हिंद की चादर' कहा जाता है.
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'सिख इतिहास' के अनुसार, गुरु तेग बहादुर के सामने उनको मारे जाने से पहले तीन शर्तें रखी गई थीं - कलमा पढ़कर मुसलमान बनने की, चमत्कार दिखाने की या फिर मौत स्वीकार करने की.
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गुरु तेग बहादुर ने शांति से उत्तर दिया था, ''हम ना ही अपना धर्म छोड़ेंगे और ना ही चमत्कार दिखाएंगे. आपने जो करना है कर लो, हम तैयार हैं.''
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'सिख इतिहास' के अनुसार, सैयद जलालुद्दीन जल्लाद ने अपनी तलवार खींची और गुरु जी का सिर तलवार से अलग कर दिया गया.
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