जानिए आजादी की लड़ाई में कितना था कस्तूरबा गांधी का योगदान

कस्तूरबा गांधी को वैसे तो पूरी दुनिया महात्मा गांधी की पत्नी को तौर पर जानते हैं, लेकिन इसके अलावा भी उनकी पहचान थी, जैसे वो एक समाज सेविका थीं.

कस्तूरबा के गंभीर और स्थिर स्वाभाव के चलते साबरमती आश्रम में उन्हें सभी बा कहकर पुकारने लगे थे. दरअसल गुजराती लोग मां को बा कहते हैं.

गांधी की क्रांति के किस्से पूरी दुनिया जानती है, लेकिन ये बात बहुत कम लोग जानते हैं कि दक्ष‍िण अफ्रीका में अमानवीय हालात में भारतीयों को काम कराने के विरुद्ध आवाज उठाने वाली कस्तूरबा ही थीं.

सबसे पहले कस्तूरबा ने ही इस बात को सबके सामने रखा था, और उनके लिए लड़ते हुए कस्तूरबा को तीन महीने के लिए जेल भी जाना पड़ा था.

कस्तूरबा इतनी अनुशासन प्रिय थीं, कि महात्मा गांधी भी उनसे ऊंची आवाज में बात नहीं करते थे.

साल 1922 में जब स्वतंत्रता की लड़ाई करते हुए महात्मा जेल चले गए थे, तब स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं के शामिल करने का जिम्मा कस्तूरबा का ही था. 

स्वाधीनता संग्राम में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए कस्तूरबा ने आंदोलन चलाया और उसमें कामयाब भी रहीं.

1915 में जब कस्तूरबा महात्मा गांधी के साथ भारत लौंटी तो साबरमती आश्रम में वो लोगों की मदद करने लगीं. 

कस्तूरबा ने जब पहली बार बेटे हीरालाल को जन्म दिया, उस वक्त गांधी इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे, तब कस्तूरबा ने अकेले ही बेटे को पालपोस कर बड़ा किया.