जानें कैसा रहा
शरद यादव का
राजनीतिक करियर
By: Shivanand Shaundik
देश की सियासत में अपनी अलग पहचान बनाने वाले शरद यादव का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद के बंदाई गांव के एक किसान परिवार में हुआ था. 1 जुलाई 1947 को जन्मे शरद यादव ने प्रारंभिक शिक्षा के बाद इंजीनियरिंग कॉलेज में एडमिशन लिया था.
जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से ही उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा. उन्होंने उनकी पढ़ाई में भी अपने प्रतिभा का लोहा मनवाया. शरद यादव इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियरिंग में गोल्ड मेडल हासिल किया था.
इसके अलावा उन्होंने रॉबर्ट्सन मॉडल साइंस कॉलेज से स्नातक की डिग्री भी हासिल की थी. ऐसा कहा जाता है कि वो बचपन से ही पढ़ाई में अव्वल थे.
साल 1971 में शरद यादव ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान राजनीति से जुड़ गए थे. वो जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से छात्र संघ अध्यक्ष चुने गए थे.
उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत मुलायम सिंह यादव, लालू यादव, एचडी देवगौड़ा और गुरुदास दासगुप्ता के साथ की थी. डॉ. राम मनोहर लोहिया के विचारों से प्रभावित होकर शरद यादव ने शुरुआती दिनों में ही कई सारे आंदोलनों में हिस्सा लिया था.
शरद यादव पहली बार वर्ष 1974 में मध्य प्रदेश की जबलपुर लोकसभा सीट से सांसद चुने गए. आपको बता दें, ये जेपी आंदोलन का वक्त था. शरद यादव हलधर किसान के रूप में जेपी द्वारा चुने गए पहले उम्मीदवार थे.
शरद यादव 1974 के बाद 1977 में दोबारा सांसद चुने गए. इसके बाद 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य चुने गए. 1989 में भी वो यूपी के बदायूं लोकसभा सीट से जीतकर तीसरी बाद संसद पहुंचे.
इसी समय उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया. उन्हें केंद्रीय कैबिनेट कपड़ा और खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री बनाया गया. वर्ष 1991 से 2014 तक शरद यादव ने बिहार की सियासत में अपना जलवा बिखेरा. इस दौरान वो बिहार की मधेपुरा सीट से सांसद रहे.
वर्ष 1995 में उन्हें जनता दल का कार्यकारी अध्यक्ष भी चुना गया. वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने लालू यादव को पटखनी दी. वर्ष 1997 में उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया.
शरद पवार को 1999 में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बनाया गया. इसके बाद वे 1 सितम्बर 2001 से 30 जून 2002 तक केंद्रीय श्रम मंत्री रहे. 1 जुलाई 2002 से 15 मई 2004 तक शरद यादव केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्री, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्री रहे.
साल 2012 में संसद में उनके बेहतरीन योगदान के लिए उन्हें 'उत्कृष्ट सांसद पुरस्कार 2012' मिला. हालांकि इसके बाद वर्ष 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें बिहार की मधेपुरा सीट से हार का सामना करना पड़ा. यहीं से शरद यादव की सियासत का सूर्यास्त होना शुरू हो गया. हालांकि उन्हें राज्यसभा भेजा गया.