ऋषि उन ज्ञानियों को संज्ञा दी जाती है, जिन्होंने वैदिक रचनाओं का निर्माण किया था. उन्हें कठोर तपस्या के बाद यह उपाधि प्राप्त होती है.
ऋषि वह कहलाते हैं जो क्रोध, लोभ, मोह, माया, अहंकार, इर्ष्या इत्यादि से कोसों दूर रहते हैं.
मुनि उन आध्यात्मिक ज्ञानियों को कहा जाता है जो अधिकांश समय मौन धारण करते हैं या बहुत कम बोलते हैं. लेकिन मुनियों को वेद एवं ग्रंथों का पूर्ण ज्ञान होता है. साथ ही वह मौन रहने की शपथ भी लेते हैं.
जो ऋषि घोर तपस्या के बाद मौन धारण करने की शपथ लेते हैं, वह मुनि कहलाते हैं.
साधु उन्हें कहा जाता है जो अधिक समय साधना में लीन रहते हैं. साधु बनने के लिए वेदों का ज्ञान प्राप्त करना आवश्यक नहीं है.
साधना से ही जो ज्ञान प्राप्त करते हैं, वह साधु कहलाते हैं. साथ ही शास्त्रों में यह भी बताया गया है कि जो व्यक्ति काम, क्रोध, लोभ मोह इत्यादी से दूर रहता है, उन्हें भी साधु ही कहा जाता है.
संत की उपाधि उन्हें दी जाती है, जिनका आचरण सत्य होता है. प्राचीन काल में कई आत्मज्ञानी व सत्यवादी लोग थे, जिन्हें संत कहा जाता था.
जैसे संत कबीरदास, संत तुलसीदास, संत रविदास इत्यादि. इन्होंने संसार और आध्यात्म के बीच संतुलन बना कर रखा था. साथ अपनी रचनाओं से सही और गलत का पाठ पढ़ाया था.