आस्था का यह महापर्व हर साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की षष्ठी तिथि को मनाए जाता है.
इस पावन पर्व पर महिलाएं कठिन व्रत रखते हुए सायंकाल में नदी तालाब या जल से भरे स्थान में खड़े होकर अस्ताचल गामी भगवान सूर्य को अर्घ्य देती हैं.
साथ ही दीप जलाकर रात्रि जागरण करते हुए गीत, कथा आदि के माध्यम से भगवान सूर्य नारायण की महिमा का बखान करती है.
सूर्य षष्ठी व्रत में कहा गया है कि राजा सांब जो कि भगवान श्री कृष्ण के पुत्र थे, उन्हें एक बार कुष्ठ रोग हो गया था.
जब बहुत उपचार के बाद कुष्ठ रोग ठीक नहीं हुआ, तब एक ऋषि ने उन्हें इससे मुक्ति पाने के लिए सूर्य की उपासना करने को कहा.
मान्यता है कि सूर्य उपासना को जानने वाले ब्राह्मण उस समय दिव्य लोक में रहते थे. जिन्हें गरूण देवता पृथ्वी पर लेकर आए और उन्होंने 3 दिनों तक यज्ञ व मंत्र आदि का पाठ किया.
इसके बाद दिव्य लोक से आए ब्राह्मण बिहार के वैशाली मगध एवं गया आदि में बस गए. तब से यह पूजा निरंतर होती चली आ रही है.
इस कथा के अलावा और भी कई कथाएं हैं, जिसमें छठ पूजा को लेकर अगल-अलग तरह की प्राचीन कहानियां बताई गई हैं.