इन 16 कलाओं को जानने के कारण पूर्णावतार हैं कान्हा जी

Photo Credits: Meta AI/Unsplash

1. गायन (संगीत)- कृष्णजी को गायन कला में महारत हासिल थी. 

2. नृत्य (नाचना)- कृष्णजी का नृत्य जग-प्रसिद्ध और इसे रास कहते हैं. 

3. वादन (संगीत बजाना)- कृष्णजी ने पहले गोपियों को बांसुरी बजाकर मोहित किया और फिर रणभूमि में शंखनाद किया. 

4. केश (बाल संवारना)- कृष्णजी की एक-एक लट पर गोपियां मोहित होती थीं. बाल संवारना भी एक कला है. 

5. आहार्य (वेशभूषा और श्रंगार)- कृष्णजी का श्रृंगार और वेशभूषा जग-जाहिर है. 

6. वाक (बोलना)- कृष्णजी की वाक कला ऐसी थी कि कोई भी मोहित हो जाता था. 

7. चित्रकला (चित्रकारी)- श्रीकृष्ण चित्रकला में भी माहिर थे. 

8. वास्तुकला (वास्तु निर्माण)- श्रीकृष्ण ने पहले वृंदावन बसाया और फिर द्वारका नगरी को. 

9. धर्म (आध्यात्मिक ज्ञान)- श्रीकृष्ण ने महाभारत कराई और गीता का ज्ञान देकर धर्म की स्थापना की. 

10. प्रेम (स्नेह और संबंधों की कला)-कृष्णजी का प्रेम शाश्वत है यानी जो हमेशा था और हमेशा रहेगा. 

11. युद्ध कला- श्रीकृष्ण को पता था कि कब युद्ध में शस्त्र उठाना है कब नहीं. 

12. राज कला- कृष्णजी ने न कभी आधिपत्य जमाया फिर भी हमेशा द्वारकाधीश कहलाए. 

13. सारथ्य कला- श्रीकृष्ण अपने भक्तों के सारथी बनकर उनका मार्गदर्शन करते हैं. 

14. अनासक्त कला- श्रीकृष्ण मोहपाश में नहीं बंधते हैं उन्हें अनासक्त रहना आता है. 

15. कर्मयोग कला- कृष्णजी सिखाते हैं कि कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है. 

16. सेवा कला- सेवा भी एक कला है. कृष्णजी ने राजा होकर भी राधिका के पैर दबाए.