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1. गायन (संगीत)- कृष्णजी को गायन कला में महारत हासिल थी.
2. नृत्य (नाचना)- कृष्णजी का नृत्य जग-प्रसिद्ध और इसे रास कहते हैं.
3. वादन (संगीत बजाना)- कृष्णजी ने पहले गोपियों को बांसुरी बजाकर मोहित किया और फिर रणभूमि में शंखनाद किया.
4. केश (बाल संवारना)- कृष्णजी की एक-एक लट पर गोपियां मोहित होती थीं. बाल संवारना भी एक कला है.
5. आहार्य (वेशभूषा और श्रंगार)- कृष्णजी का श्रृंगार और वेशभूषा जग-जाहिर है.
6. वाक (बोलना)- कृष्णजी की वाक कला ऐसी थी कि कोई भी मोहित हो जाता था.
7. चित्रकला (चित्रकारी)- श्रीकृष्ण चित्रकला में भी माहिर थे.
8. वास्तुकला (वास्तु निर्माण)- श्रीकृष्ण ने पहले वृंदावन बसाया और फिर द्वारका नगरी को.
9. धर्म (आध्यात्मिक ज्ञान)- श्रीकृष्ण ने महाभारत कराई और गीता का ज्ञान देकर धर्म की स्थापना की.
10. प्रेम (स्नेह और संबंधों की कला)-कृष्णजी का प्रेम शाश्वत है यानी जो हमेशा था और हमेशा रहेगा.
11. युद्ध कला- श्रीकृष्ण को पता था कि कब युद्ध में शस्त्र उठाना है कब नहीं.
12. राज कला- कृष्णजी ने न कभी आधिपत्य जमाया फिर भी हमेशा द्वारकाधीश कहलाए.
13. सारथ्य कला- श्रीकृष्ण अपने भक्तों के सारथी बनकर उनका मार्गदर्शन करते हैं.
14. अनासक्त कला- श्रीकृष्ण मोहपाश में नहीं बंधते हैं उन्हें अनासक्त रहना आता है.
15. कर्मयोग कला- कृष्णजी सिखाते हैं कि कर्म ही मोक्ष प्राप्ति का एकमात्र साधन है.
16. सेवा कला- सेवा भी एक कला है. कृष्णजी ने राजा होकर भी राधिका के पैर दबाए.