जानें महिलाओं के लिए मसीहा क्यों माने जाते थे ज्योतिबा फुले

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जोतिराव गोविंदराव फुले का जन्मे 11 अप्रैल 1824 में हुआ था. ये 'महात्मा फुले' और 'ज्योतिबा फुले' के नाम से भी जाने जाते हैं.

महिलाओं और दलितों के उत्थान के लिए इन्होंने कई अनेक महत्वपूर्ण कार्य किए थे.

वे भारतीय समाज में प्रचलित जाति पर आधारित विभाजन और भेदभाव के विरुद्ध थे.

इनका विवाह 1840 में सावित्री बाई से हुआ, जो बाद में स्‍वयं एक प्रसिद्ध समाजसेवी बनीं.

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दलित और स्‍त्री शिक्षा के क्षेत्र में दोनों पति-पत्‍नी ने मिलकर काम किए. वे एक कर्मठ और समाजसेवी की भावना रखने वाले व्यक्ति थे.

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फुले का मुख्य उद्देश्य औरतों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करना और बाल विवाह, विधवा विवाह का विरोध करना रहा था.

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महात्मा फुले, समाज की कुप्रथा और अंधश्रद्धा की जाल से समाज को मुक्त करना चाहते थे.

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अपना सम्पूर्ण जीवन उन्होंने स्त्रियों को शिक्षा प्रदान कराने में, स्त्रियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने में व्यतीत किया.

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19वीं सदी में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी और वो उन्हें महिला-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे. उन्होंने बच्चियों के लिए भारत देश की पहली पाठशाला पुणे में बनाई.

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उन्होंने अपनी धर्मपत्नी सावित्रीबाई फुले को खुद शिक्षा प्रदान की. मालूम हो की सावित्रीबाई फुले जी भारत की प्रथम महिला अध्यापिका थी.

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