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इस वीजा को लेकर कई प्रकार की आपत्तियां भी उठाई जा रही है. जैसे इस वीजा के माध्यम से कुशल विदेशियों को नौकरी मिल जाती है और मूल नागरिक पिछड़ जाते हैं.
साथ ही वह विदेशी कम सैलेरी पर भी काम करने को तैयार हो जाते हैं, जो मूल नागरिकों के लिए सैलेरी पाना मुश्किल कर देता है.
इस वीजा को 1990 में लाया गया था. केवल 35 वर्षों में 20 लाख वीजा दिए गए. साल 2000 तक अधिकांश वीजा भारतीयों के पास थे.
लेकिन अब अमेरिका को ऐसे और कुशल विदेशियों की जरूरत है. क्योंकि बाइडेन के काल में इन वीजा धारकों की संख्या काफी कम हो गई थी.
अगर अमेरिका इन वीजा धारकों का नौकरी नहीं देता है तो इसका सीधा असर कंपनियों की कुशलता पर पड़ेगा.
कुशलता की कमी सबसे ज्यादा एआई, क्लाउड कंप्यूटिंग, आदि जैसे तकनीकी मामलों में सबसे ज्यादा खलेगी.
दिसंबर 2024 के आंकड़ों के अनुसार अमेरिका में 80 लाख नौकरियां थी, फिर भी 68 लाख लोग बेरोजगार थे. इसकी दो वजह थी. पहली कि विदेशियों को नौकरी नहीं दी जा रही थी. दूसरा कि सहीं कुशल लोग नहीं मिल पा रहे थे.
सवाल आता है कि अमेरिका में विदेशियों को नौकरी पर कम पैसों में रखा जाता है. इस पर कोर्ट का निर्णय है कि वह ऐसी कंपनियों के खिलाफ सख्त एक्शन लेगी.
दरअसल जिनके पास यह वीजा होता है वह एक ही नौकरी पर टिके रहते हैं. जिसके कारण मूल निवासी के लिए नौकरी पाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है. ऐसे में जरूरी है कि कंपनियां विदेशियों को ज्यादा समय के लिए अपने पास न रखें.