दिल खुश कर देंगी मिर्ज़ा ग़ालिब की ये 10 शायरी

Photo: Meta AI

हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब'  ये ख़याल अच्छा है -मिर्ज़ा ग़ालिब

मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का उसी को देख कर जीते हैं जिस  काफ़िर पे दम निकले -मिर्ज़ा ग़ालिब 

हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मिरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले -मिर्ज़ा ग़ालिब 

उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है -मिर्ज़ा ग़ालिब

ये न थी हमारी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होता अगर और जीते रहते यही इंतिज़ार होता -मिर्ज़ा ग़ालिब

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है -मिर्ज़ा ग़ालिब

इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना -मिर्ज़ा ग़ालिब

न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता -मिर्ज़ा ग़ालिब

रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं -मिर्ज़ा ग़ालिब

आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक -मिर्ज़ा ग़ालिब