महफिल जमा देंगी मिर्ज़ा ग़ालिब की ये शायरियां
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इश्क़ ने ‘ग़ालिब’ निकम्मा कर दिया
वर्ना हम भी आदमी थे काम के...
हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त
लेकिन दिल के ख़ुश रखने को 'ग़ालिब' ये ख़याल अच्छा है
रगों में दौड़ने फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है
हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले
उनको देखे से जो आ जाती है मुंह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता
हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अन्दाज़े-बयां और
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता !