लेपाक्षी मंदिर को हैंगिंग पिलर टेंपल कहा जाता है. इस मंदिर में कुल 70 खंभे हैं.
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लेपाक्षी मंदिर का एक खंभा जमीन से जुड़ा हुआ नहीं है. वो हवा में लटका रहता है. ये जमीन से आधा इंच ऊपर है.
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साल 1924 में इस रहस्य का पता लगाने के लिए ब्रिटिश इंजीनियर हैमिल्टन ने खंभे को हिलाने की कोशिश की थी. लेकिन इसके साथ 10 और खंभे हिलने लगे थे.
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बाद में ASI ने अच्छे से जांच की और ये साबित किया कि इसका निर्माण गलती से नहीं हुआ है. बल्कि जानबूझकर किया गया था.
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लेपाक्षी मंदिर से एक दिलचस्प पौराणिक कहानी जुड़ी है. ये गांव उस जगह पर है, जहां रावण से पराजित होने के बाद पक्षी जटायु गिरे थे.
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जब भगवान ने पक्षी को देखा तो उन्होंने कहा कि ले पाक्षी. इसका तेलुगु में अर्थ उदय पक्षी है. इस तरह गांव का नाम लेपाक्षी पड़ा.
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लेपाक्षी मंदिर को वीरभद्र मंदिर के नाम से जाना जाता है. इसका निर्माण 1530 में दो भाइयों विरुपन्ना नायक और विरन्ना ने कराया था.
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इस मंदिर में मुख्य देवता वीरभद्र हैं, जो भगवान शिव का दूसरा उग्र रूप हैं.
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मंदिर से 200 मीटर की दूरी पर एक विशाल नंदी की प्रतिमा है. यह 27 फीट लंबी और 15 फीट ऊंची है.
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इस मंदिर में एक अधूरा मैरिज हॉल है. इसको लेकर मान्यता है कि इसे शिव और पार्वती के विवाह का जश्न मनाने के लिए बनाया गया था.
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