जानिए शिवजी के पांच प्रतीकों के बारे में 

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भगवान शिव को भोलेबाबा, महादेव और शंकर भगवान जैसे कई नामों से जाना जाता है. उनका स्वरूप भी सबसे निराला है. 

भगवान शिव की तीन आंखें हैं और गले में वह रूद्राक्ष के साथ-साथ सर्प भी धारण करते हैं. शरीर पर भस्म लगाते हैं, एक हाथ में डमरू तो दूजे में त्रिशूल.

आज हम आपको बता रहे हैं उनके पांच प्रतीकों के बारे में. शिवजी के पांच प्रतीक हैं- डमरू, त्रिशूल, त्रिपुंड, भस्म और रूद्राक्ष.

डमरू भगवान शिव ही नृत्य और संगीत के प्रवर्तक हैं. शिव जी के डमरू में न केवल सातों सुर हैं बल्कि उसके अन्दर वर्णमाला भी है. शिव जी का डमरू बजाना आनंद और मंगल का द्योतक है. वे डमरू बजाकर भी खुश होते हैं और डमरू सुनकर भी. नित्य अगर घर में शिव स्तुति डमरू बजाकर की जाए तो घर में कभी अमंगल नहीं होता. 

त्रिशूल दुनिया की कोई भी शक्ति हो- दैहिक, दैविक या भौतिक, शिवजी के त्रिशूल के आगे नहीं टिक सकती. शिव का त्रिशूल हर व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार दंड देता है. घर में सुख-समृद्धि के लिए, मुख्य द्वार के ऊपर बीचों बीच त्रिशूल लगायें या बनायें.

त्रिपुंड सतोगुण , रजोगुण और तमोगुण तीनों ही गुणों को नियंत्रित करने के कारण, शिवजी त्रिपुंड तिलक प्रयोग करते हैं. यह त्रिपुंड सफ़ेद चन्दन का होता है. ध्यान या मंत्र जाप करने के समय त्रिपुंड लगाने के परिणाम अत्यंत शुभ होते हैं. 

भस्म भगवान शिव इस दुनिया के सारे आकर्षणों से मुक्त हैं. उनके लिए ये दुनिया, मोह-माया, सबकुछ राख के समान है. सबकुछ एक दिन भस्मीभूत होकर समाप्त हो जाएगा- भस्म इसी बात का प्रतीक है. शिव जी का भस्म से भी अभिषेक होता है, जिससे वैराग्य और ज्ञान की प्राप्ति होती है.

रुद्राक्ष रुद्राक्ष का अर्थ है - रूद्र का अक्ष. माना जाता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के अश्रुओं से हुई है. रुद्राक्ष को प्राचीन काल से आभूषण के रूप में, सुरक्षा के लिए, ग्रह शांति के लिए और आध्यात्मिक लाभ के लिए प्रयोग किया जाता रहा है. 

शिवजी के ये पांच प्रतीक बहुत ही महत्वपूर्ण हैं और अगर नियमों से इन पांच प्रतीकों का उपयोग किया जाए तो सभी मनोरथ सिद्ध होते हैं.