शिवलिंग पर त्रिपुंड का अर्थ और महत्व

Image Credit: Meta AI

आपने अक्सर लोगों को माथे पर तीन रेखाओं वाला तिलक लगाए देखा होगा. इसे त्रिपुंड कहते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इसका क्या महत्व है. चलिए बताते हैं.

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त्रिपुंड का अर्थ होता है तीन सीधी रेखाएं, जो शिवलिंग या माथे पर लगाई जाती हैं. यह भगवान शिव के तीन प्रमुख गुणों का प्रतीक है. इसमें आध्यात्मिक संदेश छिपा है.

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त्रिपुंड की पहली रेखा अज्ञानता के अंत का प्रतीक है. जब व्यक्ति शिव की भक्ति करता है, उसके भीतर की अज्ञानता समाप्त हो जाती है और उसे ज्ञान मिलता है.

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दूसरी रेखा अहंकार का नाश करती है. इसका मतलब है कि शिव की कृपा से व्यक्ति के अंदर का अहंकार समाप्त होता है और वह विनम्रता की ओर बढ़ता है.

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तीसरी रेखा मोह-माया से मुक्ति का प्रतीक है. यह बताती है कि शिव की भक्ति से व्यक्ति सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठता है और जीवन के वास्तविक सत्य को समझता है.

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त्रिपुंड को भस्म से बनाया जाता है, जो शुद्धिकरण और पुनर्जन्म का प्रतीक है. भस्म इस बात को दर्शाता है कि जीवन नाशवान है और मृत्यु के बाद शरीर भी राख हो जाता है.

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आपको बता दें कि बीच की तीन उंगलियां ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भृकुटी तक त्रिपुंड लगाया जाता है.

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कुछ भक्त भगवान शिव का त्रिपुंड लगाकर उसके बीच माता गौरी के नाम का रोली बिन्दु लगाते हैं, जिसे वे गौरीशंकर का स्वरूप मानते हैं.

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त्रिपुंड भगवान शिव के तीन नेत्रों का भी प्रतीक माना जाता है. यह शिव की सर्वज्ञता और उनके त्रिकालदर्शी स्वरूप का संकेत है. त्रिपुंड को माथे पर लगाने से व्यक्ति के मन में एकाग्रता और शांति का अनुभव होता है.

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