बहुत से शायरों और कवियों ने शराब, मदिरा और मयखाने को अपने लेखन में जगह दी है.
कई बार तो युवा पार्टियों में शराब पर लिखी गईं महान शायरों की शायरियों को दोहराते नजर आते हैं.
लेकिन शराब पर पांच अलग-अलग शायरों के लिखी शायरियां पढ़कर आपको मजा आ जाएगा.
"शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वो जगह बता जहां ख़ुदा नहीं।" - मिर्ज़ा ग़ालिब
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"मस्जिद ख़ुदा का घर है, पीने की जगह नहीं , काफिर के दिल में जा, वहां ख़ुदा नहीं।" - इकबाल
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"काफिर के दिल से आया हूं मैं ये देख कर, खुदा मौजूद है वहां, पर उसे पता नहीं।" - अहमद फ़राज़
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"खुदा तो मौजूद दुनिया में हर जगह है, तू जन्नत में जा वहां पीना मना नहीं।" - सैयद वसी शाह
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"पीता हूं ग़म-ए-दुनिया भुलाने के लिए, जन्नत में कौन सा ग़म है इसलिए वहां पीने में मजा नही।" - साक़ी
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