भारत के 1947 में स्वतंत्र होने के बाद पूरे देश में सरदार वल्लभभाई पटेल के नेतृत्व में अलग-अलग रियासतों को विलय किया गया था.
सिक्किम के राजा चोग्याल से विलय पर साइन करने के लिए कहा गया लेकिन वे अगले ढाई दशकों तक साइन करने से इनकार करते रहे. इतना ही नहीं उन्होंने भूटान जैसा स्टेटस देने की मांग कर डाली.
आखिरकार अप्रैल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिक्कम को देश में मिलाने का फैसला किया.
1950 में भारत और सिक्किम के बीच एक संधी हुई. इसके बाद सिक्किम भारत का प्रोटेक्टोरेट राज्य बन गया. यानी राज्य तो चोग्याल चलाएंगे लेकिन उसके रक्षा और विदेश मामलों को इंडिया देखेगा.
1964 में नेहरू के निधन के बाद सिक्किम के राजा ने मांग की कि अब सिक्किम को भी भूटान जैसा आजाद देश माना जाए.
तब तक इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बन चुकी थीं. उन्होंने उस समय राजा की बातों को अनसुना कर दिया. 71 के युद्ध में जीत के बाद इंदिरा गांधी ने सिक्किम को पूरी तरह देश में विलय करने का फैसला किया.
उन्होंने रॉ के चीफ आरएन काव को बुलाया. कॉव ने एक प्लान बनाकर इंदिरा के सामने पेश किया. प्लान चोग्याल राजशाही को धीरे-धीरे कमजोर करने का था. इसमें सियासी रणनीति की ज्यादा जरूरत थी.
स्थानीय पार्टियों की मदद ली गई. सिक्किम नेशनल कांग्रेस के लीडर क़ाज़ी लेनडुप दोरजी ने पहले से ही राजशाही के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी थी.
जनता भी आमतौर पर राजशाही को लेकर असंतुष्ट होती जा रही थी. रॉ के प्लान के तहत सिक्किम में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन शुरू हुए.
फिर 06 अप्रैल 1975 को भारतीय सेना के 5000 जवानों ने महज 30 मिनट में राजमहल सहित पूरे सिक्कम पर कब्जा करके राजा को अपने नियंत्रण में ले लिया.
सिक्किम पर भारतीय सेना के नियंत्रण के बाद जनमत संग्रह कराया गया. जनमत संग्रह में 97.5 फीसदी लोगों ने भारत के साथ जाने की वकालत की.
इसके बाद सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल, 1975 को लोकसभा में पेश किया गया. उसी दिन इसे 299-11 के मत से पास कर दिया गया.
राज्यसभा में यह बिल 26 अप्रैल 1975 को पास हुआ. 15 मई, 1975 को जैसे ही राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए और सिक्किम भारत का पूर्ण राज्य बन गया.
इस तरह 16 मई, 1975 को सिक्किम भारतीय संघ का पूर्ण 22 वां राज्य बन गया।