'नीलकुरिंजी' फूल विश्व का सबसे दुर्लभ फूल जो 12 सालों में सिर्फ एक बार खिलता है.
नीलाकुरिंजी एक मोनोकार्पिक पौधा है जो 12 सालों बाद खिलकर जल्दी मुरझा जाता है.
इसे दोबारा तैयार होने में काफी समय लगता है. ये फूलों की एक ऐसी प्रजाति है जो विश्व में कहीं भी नहीं खिलती.
इस फूल का खिलना पूरे केरल के लिए खुशहाली का प्रतीक है. इसके खिलने से केरल में टूरिज्म का कारोबार फलता-फूलता है.
नीलकुरिंजी फूल से भी ज्यादा दुर्लभ है इसका शहद, जिसे कुरिंजीथन कहते हैं.
इस फूल का रस मधुमक्खियों को खूब पसंद है, लेकिन इस दुर्लभ शहद को सिर्फ स्थानीय आदिवासी ही हासिल कर सकते हैं और इसे बाजार में बेचा नहीं जाता.
इस फूल को लेकर एक किताब के बारे में बताया गया है कि केरल की वन जनजाति के लोग इसे इस फूल को प्यार का प्रतीक मानते हैं.
स्थानीय लोगों की माने तो भगवान मुरुगा ने एक आदिवासी शिकारी लड़की वल्ली से नीलकुरिंजी के फूलों की माला पहनाकर विवाह किया था.