गांधीजी की वो 10 बातें, जो आज भी प्रासंगिक हैं
By: Shivanand Shaundik
गांधीजी सत्य के बड़े आग्रही थे. वे सत्य को ईश्वर मानते थे. सत्य उनके लिये सर्वोपरि सिद्धांत था. वे वचन और चिंतन में सत्य की स्थापना का प्रयत्न करते थे.
गांधीजी के अनुसार मन, वचन और शरीर से किसी को भी दु:ख न पहुँचाना ही अहिंसा है. गांधीजी के विचारों का मूल लक्ष्य सत्य एवं अहिंसा के माध्यम से विरोधियों का हृदय परिवर्तन करना है.
सत्याग्रह का अर्थ है सभी प्रकार के अन्याय, उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ शुद्धतम आत्मबल का प्रयोग करना. यह व्यक्तिगत पीड़ा सहन कर अधिकारों को सुरक्षित करने और दूसरों को चोट न पहुँचाने की एक विधि है.
सर्वोदय शब्द का अर्थ है ‘सार्वभौमिक उत्थान’ या सभी की प्रगति. यह शब्द पहली बार गांधीजी ने राजनीतिक अर्थव्यवस्था पर जॉन रस्किन की पुस्तक ‘अंटू दिस लास्ट’ में पढ़ा था.
स्वराज शब्द का अर्थ स्व-शासन है, लेकिन गांधीजी ने इसे एक ऐसी अभिन्न क्रांति की संज्ञा दी जो कि जीवन के सभी क्षेत्रों को समाहित करती है.
ट्रस्टीशिप एक सामाजिक-आर्थिक दर्शन है जिसे गांधीजी द्वारा प्रतिपादित किया गया था. यह अमीर लोगों को एक ऐसा माध्यम प्रदान करता है जिसके द्वारा वे गरीब और असहाय लोगों की मदद कर सकें.
स्वदेशी शब्द संस्कृत से लिया गया है और यह संस्कृत के दो शब्दों का एक संयोजन है. ‘स्व’ का अर्थ है स्वयं और देश का अर्थ देश ही है अर्थात् अपना देश.
मानव मात्र की खुशी ही गांधी जी की मूल कसौटी थी. इनका विचार था कि प्रगति को मानवीय प्रसन्नता के संदर्भ में देखा जाना चाहिए.
गांधी जी का मंत्र था कि जब भी कोई काम हाथ में लो, यह ध्यान में रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्यक्ति को क्या लाभ होगा.
साम्प्रदायिक कट्टरता और आतंकवाद के वर्तमान दौर में गांधीजी और उनकी विचारधारा की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है. उनके सिद्धान्तों के अनुसार साम्प्रदायिक सद्भावना कायम करने के लिए सभी धर्मों के लोगों को साथ लेकर चलना जरूरी है.