Photos: Unsplash
एक मुद्दत से तिरी याद भी आई न हमें और हम भूल गए हों तुझे ऐसा भी नहीं
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
तुम मुख़ातिब भी हो क़रीब भी हो तुम को देखें कि तुम से बात करें
शाम भी थी धुआँ धुआँ हुस्न भी था उदास उदास दिल को कई कहानियाँ याद सी आ के रह गईं
आए थे हँसते खेलते मय-ख़ाने में 'फ़िराक़' जब पी चुके शराब तो संजीदा हो गए
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं, तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
मैं हूँ दिल है तन्हाई है तुम भी होते अच्छा होता
बहुत दिनों में मोहब्बत को ये हुआ मा'लूम जो तेरे हिज्र में गुज़री वो रात रात हुई
ये माना ज़िंदगी है चार दिन की बहुत होते हैं यारों चार दिन भी
ज़िंदगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त सोच लें और उदास हो जाएँ