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क्या आप जानते हैं कि महाकुंभ की कथा अमृत की बूंदों से जुड़ी है? यह सिर्फ एक मेला नहीं, बल्कि एक ऐसा धार्मिक पर्व है, जो समुद्र मंथन की पौराणिक कथा और अमृत से जुड़ी है.
हर 12 साल में लगने वाले इस महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु पवित्र स्नान करते हैं. मान्यता है कि इस महापर्व में स्नान करने से मोक्ष प्राप्ति होती है.
महाकुंभ का मेला सिर्फ 4 जगह लगता है. चलिए आपको अमृत की बूंदों से बने इन पवित्र स्थलों की कहानी बताते हैं.
महाकुंभ का इतिहास समुद्र मंथन की उस पौराणिक कथा से जुड़ा है, जिसमें देवताओं और असुरों ने अमृत पाने के लिए समुद्र को मथा था.
समुद्र मंथन में सबसे पहले कालकूट विष निकला था, जिसे भगवान शिव ने पीकर सृष्टि को बचाया. तभी से भगवान शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है.
अमृत कलश के लिए देवताओं और असुरों के बीच 12 दिनों तक घमासान युद्ध हुआ. यह 12 दिन मनुष्यों के लिए 12 वर्षों के बराबर माने जाते हैं.
इस मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की बूंदें धरती पर 4 जगहों पर गिरीं. इन चार जगहों पर महाकुंभ लगता है. इसमें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक शामिल है.
पौराणिक मान्यता के अनुसार देवताओं के 12 दिन धरती के 12 वर्षों के बराबर होते हैं. इसलिए हर 12 साल पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है.
जहां-जहां अमृत की बूंद गिरी, वहां की नदियां पवित्र हो गईं. महाकुंभ के दौरान इन नदियों में स्नान करना मोक्ष प्राप्ति का मार्ग माना जाता है.