जोशीमठ की धार्मिक कहानी जानिए

By: Shashi Kant

जोशीमठ उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थिति है. जोशीमठ को हिंदू धर्म का केंद्र माना जाता है.

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सनातन परंपरा के मुताबिक शंकराचार्य ने जोशीमठ में पहला ज्योतिर्मठ स्थापित किया था.

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शंकराचार्य ने यहां घोर तप किया था. इसे ज्योतिष मठ या श्रीमठ या जोशीमठ के नाम से भी जाना जाता है.

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शंकराचार्य ने अपने शिष्य तोटकाचार्य को इस मठ के पहले शंकराचार्य के पद पर बिठाया था.

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बद्रीनाथ की यात्रा के दौरान श्रद्धालुओं को कम से कम एक रात जोशीमठ में बिताना जरूरी है.

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सर्दी में बद्रीनाथ मंदिर के कपाट बंद होने के बाद बद्री विशाल की मूर्ति को जोशीमठ में रखा जाता है.

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जोशीमठ में 6 महीने तक बद्री विशाल की पूजा की जाती है.

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जोशीमठ के 5 बद्री हैं. जिसमें से मुख्य बद्रीनाथ मंदिर है. जबकि दूसरे बद्री का दर्शन जोशीमठ से 12 किलोमीटर दूर तपोवन में होता है.

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तीसरे बद्री को वृद्ध बद्री के नाम से जाना जाता है, जो जोशीमठ से 5 किलोमीटर दूर है.

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चौथे बद्री कर्णप्रयाग जोशीमठ से 16 किलोमीटर हैं. जबकि पांचवें बद्री जोशीमठ से 20 किलोमीटर दूर हैं.

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जोशीमठ में नरसिंह भगवान के मंदिर में 1200 साल पुराना कल्पवृक्ष होने की बात कही जाती है.

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ज्योतिर्मठ के बारे में मान्यता है कि शंकराचार्य ने अपने तप के बल पर इस स्थान पर दिव्य ज्योति प्रकट की थी.

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जोशीमठ का वर्णन स्कंद पुराण के केदारखंड, विष्णु पुराण और शिव पुराण में भी मिलता है.

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जोशीमठ कभी कत्यूरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी. जिसे कार्तिकेय के नाम से जाना जाता था. 

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कत्यूरी राजवंश ने 7वीं से 11वीं सदी तक यहां पर शासन किया था.

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सिखों का तीर्थ स्थल हेमकुंड साहिब जाने के लिए मुख्य पड़ाव जोशीमठ ही है.

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