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जितिया व्रत पुत्र की लंबी आयु के लिए रखा जाता है. मान्यता है कि ये व्रत रखने से दुख-दर्द और परेशानियों से संतान की रक्षा होती है.
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जितिया व्रत 3 दिन का होता है. पहले दिन नहाय खाय होता है. दूसरे दिन व्रत रखा जाता है और तीसरे दिन पूजा-पाठ करके व्रत का पारण किया जाता है.
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जितिया या जीवित्पुत्रिका व्रत 5 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ शुरू होगा. 6 अक्टूबर को व्रत रखा जाएगा. 7 अक्टूबर को पारण किया जाएगा.
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जितिया व्रत रखने से पहले नोनी का साग खाने की परंपरा है. इसमें कैल्शियम और आयरन होता है. जिससे व्रती के शरीर में पोषक तत्वों की कमी नहीं होती है.
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जितिया व्रत के दौरान निर्जला रहा जाता है. इसका मतलब है कि इस दौरान पानी का एक बूंद भी ग्रहण नहीं किया जाता है.
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जितिया के दिन कोई भी वस्तु नहीं काटा जाता है. कटे हुए फल-सब्जी भी नहीं खाई जाती है. इस दिन चाकू का इस्तेमाल नहीं होता है.
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पूजा के दौरान सरसों का तेल और खल चढ़ाया जाता है. व्रत पारण के बाद ये तेल बच्चों के सिर पर आशीर्वाद के तौर पर लगाया जाता है.
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जितिया व्रत रखने वाली महिलाएं पीले और लाल रंग का धागा गले में धारती करती हैं. महिलाओं के जितने पुत्र होते हैं, उसके बराबर गांठ धांगे में बांधी जाती है.
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कुछ व्रती महिलाएं जितिया माला में सोने के लॉकेट, चांदी के लॉकेट, हीरा धारण करती हैं. ये परंपरा काफी पुरानी है.
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